भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। इनका प्राकट्य खम्बे से गोधूली वेला के समय हुआ था। भगवान नृसिंह, श्रीहरि विष्णु के उग्र और शक्तिशाली अवतार माने जाते हैं। इनकी उपासना करने से हर प्रकार के संकट और दुर्घटना से रक्षा होती है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
आज 4 मई को भगवान नरसिंह का प्राकट्योत्सव है। ग्रंथों के मुताबिक वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी यानी चौदहवीं तिथि को भगवान विष्णु का चौथा अवतार हुआ। जो नरसिंह रूप में था।
हिन्दू धर्म में हर वर्ष वैशाख महिने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। नरसिंह जयंती के दिन हिंदू धर्म के लोग भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह की पूजा-अर्चना करते हैं। हिंदू धर्म में नरसिंह जयंती का खास महत्व है। भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार इस बात का प्रतीक है कि जब भी किसी भक्त पर कोई संकट आता है, तो भगवान उसकी रक्षा के लिए स्वंय अवतार लेते हैं। भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर उसे अभय प्रदान किया। नरसिंह जयंती के दिन भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह की पूजा करने से व्यक्ति को अभय की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं नरसिंह अवतार के बारे में।
नरसिंह अवतार की कथा
नरसिंह जयंती के दिन जो भी भक्त व्रत का संकलप लेते हैं, उन्हें इस कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए। पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक ऋषि हुआ करते थे, जिनका नाम ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी का नाम दिति था। ऋषि और उनकी पत्नी दिति को 2 पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम ‘हरिण्याक्ष’ और दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था। भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष से पृथ्वी की रक्षा के हेतु वराह रूप धारण कर उसका वध कर दिया था।
भगवान विष्णु के द्वारा अपने भाई के वध से दुखी और क्रोधित हिरण्यकश्यप ने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए अजेय होने का संकल्प कर हजारों वर्षों तक घोर तप किया। हिरण्यकश्यप की तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से उसका बध होगा और न शस्त्र से, न वो दिन में मरेगा न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में और न पृथ्वी में।
ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त करके हिरण्यकश्यप अजेय हो गया, उसने इंद्र से युद्ध कर स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया, साथ ही सभी लोकों पर उसका राज हो गया। हिरण्यकश्यप इतना अंहकारी हो गया कि उसने अपनी प्रजा से खुद को भगवान की तरह पूजने का आदेश दिया और आदेश न मानने वाला सजा का भागीदार होता था।
हिरण्यकश्यप के अत्याचार की कोई सीमा नहीं रही, उसने प्रभु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था तो असुर, लेकिन वो अपने पिता से बिलकुल विपरीत था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, ये बात उसके पिता को पसंद नहीं थी, जिसके चलते उसने कई बार अपने पुत्र का वध करने की कोशिश की, लेकिन विष्णु भक्त होने के कारण हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया।
भक्त प्रह्लाद पर हिरण्यकश्यप के अत्याचार की जब सभी सीमाएं पार कर गईं, तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। जैसे हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था, वैसे ही भगवान ने उसका वध किया। भगवान नरसिंह ने दिन और रात के बीच के वक्त में आधे मनुष्य और आधे शेर का रूप धारण कर नरसिंह अवतार लिया। भगवान नरसिंह ने खंभा फाड़कर अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को मुख्य दरवाजे के बीच अपने पैर पर लिटा दिया, शेर जैसे तेज नाखुनों से पेट फाड़कर उसका वध कर दिया। इस प्रकार से उन्होंने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। उन्होंने अर्शीवाद दिया कि जो भी भक्त वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उनका व्रत रखेगा, वह सभी तरह के दुखों से दूर रहेगा।