महाकुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है।यह भारत की पवित्र नदी पर आयोजित होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम है। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक सम्मेलन कुंभ में भाग लेने देश-विदेश से सनातन धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से न केवल आत्मा की शुद्धि होती है, बल्कि सारे पाप भी धुल जाते हैं। महाकुंभ मेला हर 12 सालों में आयोजित किया जाता है। आइए जानते हैं कि 12 साल बाद आयोजित हो रहा महाकुंभ क्यों खास है।
पवित्र नदी में एक डुबकी लगाते ही सारे पाप खत्म !
जी हाँ, हिंदुस्तान में करोड़ों सनातनियों के लिए कुंभ ऐसा ही एक महापर्व है जिसका उन्हें हमेशा इंतज़ार रहता है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं में ऐसी आस्था है कि कुंभ के दौरान पवित्र नदी में डुबकी लगाते ही बुरे कर्मों से छुटकारा मिल जाता है।
मान्यता तो ये भी है कि गंगा नदी में कुंभ के दौरान स्नान करने से जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है; इसी उम्मीद में देश विदेश से लाखों श्रद्धालु स्नान के लिए प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन या नासिक पहुँचते हैं। लेकिन मन में ये सवाल उठना लाज़िमी है कि आखिर सिर्फ इन्ही शहरों या यहाँ की नदी किनारे ही कुंभ क्यों लगता है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि पौराणिक ग्रंथों में इन जगहों का कुंभ से सीधा संबंध बताया गया है।
कुंभ का पर्व हर 12 साल के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं।
कुंभ मेला क्यों लगता है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवता और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान अमृत का एक कलश (कुंभ) निकला, जिसे असुरों से बचाने के लिए देवता भागे। भागने के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। इसलिए, तब से इन स्थानों को पवित्र माना गया और इन पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा। अमृत की बूंदें हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में गिरी थीं। उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे मेला लगता है। नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ मेला आयोजित होता है।
प्रयागराज
इसमें इलाहाबाद यानी प्रयागराज त्रिवेणी संगम पर पूजा और स्नान किया जाता है, जो गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है। गंगा और यमुना की मौजूदगी की पहचान उनके साफ़ और हरे रंग से की जाती है। तीसरी नदी, सरस्वती पौराणिक है और अदृश्य मानी जाती है।
प्रयाग (इलाहाबाद) के कुंभ मेले का सभी मेलों में बड़ा स्थान है।
हरिद्वार
इसमें ‘हर की पौड़ी’ पर लाखों श्रद्धालु जुटते हैं और अनुष्ठान स्नान करते हैं। उत्तराखंड के इस पवित्र शहर हरिद्वार का ये प्रसिद्ध घाट है, जहाँ गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती हैं।
हरिद्वार हिमालय पर्वत श्रृंखला के शिवालिक पर्वत के नीचे स्थित है। प्राचीन ग्रंथों में हरिद्वार को तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और मोक्ष द्वार के नामों से भी जाना जाता है। हरिद्वार का धार्मिक महत्व विशाल है। यह हिन्दुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थान है; मेले की तिथि की गणना करने के लिए सूर्य, चंद्र और बृहस्पति की स्थिति की जरूरत होती है।
नासिक
इसमें त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर और राम कुंड में गोदावरी नदी के तट पर पूजा स्नान शामिल है। इस मेले को नासिक त्र्यंबक कुंभ मेले के नाम से भी जाना जाता है।
देश में 12 में से एक ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर में स्थित है, यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ। 12 साल में एक बार सिंहस्थ कुम्भ मेला नासिक और त्रयम्बकेश्वर में होता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहाँ अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं। कुंभ मेले में हज़ारों श्रद्धालु गोदावरी के पवित्र जल में नहा कर अपनी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्रार्थना करते हैं। यहाँ शिवरात्रि का त्यौहार भी धूम धाम से मनाया जाता है।
उज्जैन
इसमें शिप्रा नदी के तट पर आनुष्ठानिक स्नान शामिल है। भक्त महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के भी दर्शन करते हैं, जो भगवान शिव के स्वयंभू लिंग का निवास स्थान है।
उज्जैन का अर्थ है विजय की नगरी और यह मध्य प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर है। इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर शिप्रा नदी के तट पर बसा उज्जैन पवित्र और धार्मिक स्थलों में से एक है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शून्य डिग्री उज्जैन से शुरू होता है। महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन 7 पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है। (महाभारत के तीसरे पर्व को अरण्य पर्व या वन पर्व कहा जाता है)।
कुम्भ मेला लगने का धार्मिक महत्व और आध्यात्मिक महत्व
कुंभ मेला का उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि का अवसर प्रदान करना है। मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले में गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है, जहां ज्ञान, भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है।
कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों लगता है?
कुंभ मेला की तिथियां खगोलीय घटनाओं के आधार पर तय होती हैं। बृहस्पति ग्रह और सूर्य की स्थिति का कुंभ मेले से गहरा संबंध है। जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं। 12 राशियां 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो समय चक्र और मानव जीवन से जुड़े होते हैं। कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने पर यह मेला आयोजित होता है। इसके अलावा 12 साल का चक्र मानव जीवन में एक विशेष ऊर्जा परिवर्तन को दर्शाता है।
यह समय आत्मशुद्धि, आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त माना गया है।