आज मकर संक्रांति मनाई जा रही है। ग्रंथों में सूर्य के राशि बदलने के समय से ही संक्रांति मनाने का फैसला किया जाता है। 14 जनवरी की रात 8 बजे के बाद सूर्य मकर राशि में आ गया था। अस्त होने के बाद सूर्य ने राशि बदली इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
ज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु रहा है और रहेगा भी। हमारे ऋषि मुनियों ने अन्तरिक्ष का सूक्ष्म ज्ञान अर्जित किया और समूचे विश्व को प्रदान किया। ग्रह नक्षत्रों का ज्ञान सर्व प्रथम भारतीय मनीषियों ने प्राप्त किया। सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है आज का विज्ञान इस क्षेत्र में भारतीय विद्वानों का लोहा मानता है। आज हम भटक जाते हैं तथा एक दूसरे की बात काटने की होड़ में अपना हित तलासतें हैं। कोई भी पर्व हो? बिना समझे, बिना तह तक गए हम अपनी बात रख देते हैं। इन विषयों पर बहुत कुछ लिखना चाहता हूं पर किसके लिए? न कोई पढ़ना चाहता, न समझना चाहता है। फिर भी लिखने के लिए विवश सा हूं। अतः कुछ लिख रहा हूं, कोई पढ़े या न पढ़े। देखिए— बारह जनवरी सन् 1863 को स्वामी विवेकानंद जी का जन्म हुआ उस दिन मकर संक्रांति थी। अठ्ठावन दिन शर शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन अपना शरीर त्यागा, तब ईसवी सन् नहीं था।
भारतीय मनीषियों द्वारा जो गणना की है उसमें नौ तरह के महीनों का उल्लेख है, जिनमें सौर मास व चान्द्र मास विशेष उल्लेखनीय हैं। सौर मास में बारह महीने होते हैं जो कम से कम उन्तीस दिन व अधिक से अधिक बत्तीस दिन का एक महीना होता है। इस तरह एक वर्ष का मान 365 दिन 06 घण्टे 09 मिनट 10.8 सेकेंड है। इस गणित में छः घण्टे को तो हर चौथे वर्ष फरवरी में एक दिन बढ़ा कर ठीक कर रखा है पर शेष मिनट व सेकेंड को नहीं मिलाया गया है जिससे संक्रमण काल में कुछ अन्तर आ जाता है। एक मानक है कि लोहड़ी तेरह जनवरी को व उसके दूसरे दिन मकर संक्रांति। पर गणित में यह आवश्यक नहीं है कि हर वर्ष चौदह जनवरी को ही मकर संक्रांति आए। विगत चालीस वर्षों का आंकलन देखते हैं कि वर्ष 1984, 1987, 1988, 1991, 1992, 1996, 2000, 2004, 2008, 2012, 2016, 2019, 2020 व 2023 में मकर संक्रांति पन्द्रह जनवरी को आई है।
पंचांग निर्माता यथा सम्भव प्रयास करते हैं कि गणना समुचित हो फिर भी लोक मानस की भावना के अनुरूप अपना स्पष्ट निर्णय न लिख कर थोड़ा सा भ्रम पैदा कर देते हैं, या चुप्पी साध लेते हैं, अतः स्थानीय विद्वानों को इस गम्भीर विषयों पर मतान्तर नहीं करवाना चाहिए इस कारण आम जन मानस की भावना को ठेस पहुंचती है व ज्योतिष जैसे अटल सत्य विषय से भी विश्वास समाप्त हो जाता है, हो जाएगा। अस्तु मेरा अनुरोध है कि बिना समुचित जानकारी के हम सहिष्णु व ज्योतिष पर विश्वास करने वाले लोगों को भ्रमित न कर उचित मार्गदर्शन करें। बहुत से उदाहरण है कि लगभग 157 वर्षों के बाद, एक दिन बाद ही संक्रमण काल आएगा। धीरे धीरे मकर संक्रांति सोलह जनवरी को भी होगी। यदि काल गणना में डेढ़ सौ वर्ष बाद भी एक दिन बढ़ाया जाता तो इस सूक्ष्म समय का अन्तर हट सकता था पर ऐसा है नहीं। फिर भी सूर्य की गति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। चान्द्र मास जो लगभग साढ़े उन्नतीस दिन का एक महीना व 354 दिन का एक वर्ष होता है हर तीन वर्ष में एक अधिक मास होकर अपना सन्तुलन बना लेता है। चान्द्र मास का भी अपना मान है — एक महीना- 29 दिन 31घटी 50 पल व साढ़े सात विपल का होता है। और यह निर्विवाद सत्य है कि हमारी यह गणना सूक्ष्म तम व शुद्धतम है अतः यह हमारा परम कर्तव्य है कि हम आने वाली पीढ़ी को इस सूक्ष्म गणना का सही ज्ञान करवाएं।
पश्चिमी सभ्यता के अन्ध भक्त न बनें। हर विषय में नकल उचित नहीं है। जब हम स्वयं पाक साफ नहीं है फिर हम कहां से ईमानदार पीढ़ी को बनाएंगे। देश भक्तों की आवश्यकता है, जिन्हें तैयार करना भारतीय मनीषियों का दायित्व है। आज के परिप्रेक्ष्य में सभी जनमानस को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं समर्पित करते हुए उत्तरायण के सूर्य का हार्दिक अभिनन्दन एवं सुमधुर प्रभात का स्वागत।