जीवन का मंत्र : अपना फैसला स्वयं पर ही करना चाहिए

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

Uttarakhand

आपस में सुलझाने की अपेक्षा जो अन्यों से फैसला करवाते हैं, वे हमेशा घाटे में रहते हैं। सद्भाव और सहकार के अभाव में व्यक्ति अपने हाथ आई सम्पदा भी खो देता है। इस छोटे से दृष्टान्त से हम समझ सकते हैं कि एक छोटे ऊदबिलाव ने पानी में घुसकर एक मोटी मछली की पूछ पकड़ी। मछली उस ऊदबिलाव से अपने प्राणों की रक्षा हेतु अपनी पूरी शक्ति लगाकर उसे पानी में खींच कर ले गई। ऊदबिलाव ने स्वयं को असहाय व असमर्थ समझ कर अपने दूसरे साथी को जोर से पुकारा, उसका साथी वहां दौड़ कर आया और दोनों ने मिलकर उस मछली को किनारे पर पटक दिया।

पर अब उन दोनों ऊदबिलावों के समक्ष उस मछली को समान भाग में बांटने की समस्या खड़ी हो गई और दोनों आपस में झगड़ने लगे। कितना भाग किसे मिले इसका फैसला आपस में नहीं कर सके। इसी समय वहां एक धूर्त सियार आया। ऊदबिलावों ने मछली के बंटवारे के लिए उस सियार को अपना पंच बनाया। उस धूर्त सियार ने मछली के बंटवारे के लिए उन मूर्ख लालची ऊदबिलावों के सामने समान रूप से बांटने के लिए वही नीति अपनाई, जो एक रोटी के लिए दो बिल्लियों के लड़ने पर बन्दर ने अपनाई थी।

सियार बलवान भी था और धूर्त भी अतः उस मछली को समान रूप से बांटने के बहाने वह पूरी मछली हजम कर गया। और ऊदबिलावों को अपनी मूर्खता पर केवल हाथ मलते ही रहना पड़ा। तभी तो कहा गया है कि आपसी झगड़ा आपस में ही सुलझाना चाहिए। अन्यथा सत्य कहने के बहाने ही अनेक अनर्थ हो जाते हैं।

‘सत्यमेव जयते’ सत् सद् को समझने वाला व्यक्ति जी तोड़ प्रयास करता है, न्याय ढूंढ़ता है पर उन दो ठगों की तरह सत्य की तक नहीं पहुंच पाता, जो वास्तव में सत्य कह कर अपने मित्र को ही ठग लेते हैं। यदि दो ठग किसी के मित्र बन जाएं। और समय पाकर एक ठग उसका बटुआ उठाकर अपने साथी ठग की जेब में डाल दे।

जब वह व्यक्ति पूछे कि ‘मेरा बटुआ कहां है’ ? पहला ठग कसम खाकर कहे कि मेरे पास नहीं है। और दूसरा ठग कहे कि मैंने तो छुआ तक नहीं। समझिए कि शब्दों की दृष्टि से दोनों सत्य कह रहे हैं, परन्तु दोनों का उद्देश्य उस व्यक्ति को ठगना ही है। वे दोनों जानते हैं कि बटुआ उन्हीं की मिली साजिश से चुराया गया है सत्य के जाल में उसे उलझा कर, सत्य का गला घोंटा जा रहा है। अतः आत्म विश्वास से जीवन यापन कर इस संसार में रहना ही पड़ता है।

अभिप्राय यह है कि अपना फैसला स्वयं पर निर्भर करना चाहिए। यह प्रश्न सदैव अनुत्तरित ही रहेगा कि अपना भी क्या विश्वसनीय है? जो व्यक्ति आज हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है क्या वह विश्वसनीय है? राजनीति में जो लोग घुस गए हैं क्या उनकी कथनी और करनी एक ही है? यही विचारणीय है। आज इस पर ही चिन्तन करना है और करना भी चाहिए, तभी इस संसार को समझा जा सकता है।

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