हिमशिखर धर्म डेस्क
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं श्रीहनुमानजी। दशरथनंदन राम हनुमान के हृदय में बसते हैं। मन ठहराकर और तन दौड़ाकर काम करना हनुमानजी की विशिष्ट शैली है। उनके काम का ढंग ही कुछ ऐसा था कि हर कर्म उपाय बन जाता था। लंका में जाकर जब उन्होंने सीताजी को सूचना दी कि हम युद्ध जीत चुके हैं तो सीताजी ने उन्हें आशीर्वाद में कहा था- सारे सद्गुण तेरे हृदय में बसें और रामजी व लक्ष्मणजी तुझ पर सदैव प्रसन्न रहें। ऐसी स्थिति हर उस मनुष्य की बन सकती है जिसका मन निष्क्रिय और तन सक्रिय हो।
हनुमानजी सब में राम देखते थे। हर काम करते हुए भजनरत रहते थे। इसीलिए सीताजी ने उनसे कहा था- ‘अब सोइ जतन करहु तुम्ह ताता। देखौं नयन स्याम मृदु गाता।’ हे हनुमान, अब तुम ऐसा उपाय करो जिससे कि मैं प्रभु श्रीराम के कोमल-श्याम शरीर के दर्शन कर सकूं। सीताजी जान चुकी थीं कि यह व्यक्ति जो भी काम करता है, उसमें उपाय निकाल लेता है।
इसका कर्म ही निदान है। यह सक्षम है किसी भी काम में परिणाम देने में। लंका दहन की घटना वे देख ही चुकी थीं, जो केवल एक कर्म नहीं था, उपाय था। उपाय इस बात का कि मेरे जाने के बाद सीताजी को रावण तथा उसके राक्षस प्रताड़ित न करें। रावण भयभीत हो जाए और विभीषण रामजी के पक्ष में आ जाए। हमारा भी हर कर्म उपाय हो सकता है। बस, हृदय में हनुमानजी बसें, मन निष्क्रिय और तन सक्रिय रहे।