महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए श्रृद्धालु दूर-दूर से आते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। कभी सोचा है कि भगवान शिव को जल से इतना प्रेम क्यों है? इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे खास बातें…
स्वामी निखिलेश्वरानंद
पुराणों के अनुसार मन्दराचल पर्वत को धुरी बनाकर वासुकी नागों से बांधकर समुद्र मंथन सावन में संपन्न किया गया। समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्रकट हुए। इसमें से तेरह रत्नों को सभी देवताओं इत्यादि में बांट दिया गया। समुद्र मंथन से अमृत भी निकला, जिसे सारे देवताओं ने ग्रहण किया। साथ ही श्री की उत्पति भी हुई जिसे भगवान विष्णु ने वरण किया। लेकिन इसके साथ ही हलाहल विष भी निकला। वह विष इतना अधिक तीव्र था कि उसे ग्रहण करने की क्षमता किसी भी देवता, राक्षस में नहीं थी।
तब सब ने मिल कर भगवान शिव से निवेदन किया कि ‘आप ही आद्या शक्ति से युक्त महादेव हैं, जो इस हलाहल को ग्रहण कर संसार को विष से बचा सकते हैं।’ तब भगवान शिव ने देवताओं के इस आग्रह को स्वीकार कर वह विष हलाहल ग्रहण कर अपने कंठ में रख लिया। इसी कारण भगवान शिव ‘नीलकंठ’ कहलाए। लेकिन विष में अत्यधिक तीव्रता थी, जिस कारण भगवान शिव के शरीर से तीव्र अग्नि निकलने लगी। सारे ब्रह्माण्ड में उष्णता छा गई और देव-दानव मनुष्य हाहाकार करने लगे।
तब भगवान शिव ने शीतलता के लिए अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण किया। लेकिन इसके उपरानत भी विष की तीव्रता कम नहीं हुई। तब सारे देवता विचार-विमर्श करने लगे कि ‘क्या करना चाहिए जिससे विष की ज्वाला कम हो और संसार में फिर से शांति आ सके।’
यह निर्णय लिया गया कि भगवान शिव पर जल धारा प्रवाहित की जाए तो उससे उनका मस्तक थोड़ा शांत होगा और संसार में शांति आ सकती है। सबसे बड़ी गंगा नदी है और देवताओं ने गंगा नदी को आकाश मार्ग से भगवान शिव के ऊपर प्रवाहित किया और निरन्तर जल धारा प्रवाहित की।
इस निरन्तर जल धारा के प्रवाह से भगवान शिव का मस्तिष्क थोड़ा शांत हुआ और केवल जल धारा से प्रभाव नहीं पड़ा तो देवताओं इत्यादि ने मिल कर भगवान शिव पर दूध की धारा प्रवाहित की। शुद्ध दूध में वह शक्ति होती है वह विष के प्रभाव को शांत कर देती है।
इसी परम्परा में युगों-युगों से शिव के प्रतीक शिवलिंग पर निरन्तर जलधारा और दुग्ध धारा का अभिषेक किया जाता है। इस प्रकार का अभिषेक करने से मनुष्य जीवन का विष समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही माघ माह में सोमवार का विशेष महत्व है। जब पूर्ण विधि विधान सहित भगवान शिव के सांसारिक प्रतीक रूप शिवलिंग का अभिषेक संपन्न किया जाता है।
जीवन में जल शांति का स्वरूप है, निरंतर प्रवाह का प्रतीक है। वहीं दुग्ध जीवन शक्ति का प्रतीक है। यह शुद्धतम प्रसाद भी है। माघ माह में भगवान रुद्र का गुणगान करते हुए अभिषेक संपन्न किया जाना विशेष कल्याणकारी होता है।