भगवान नृसिंह प्रकट उत्सव पर विधायक किशोर को मिला टेमरू का सोटा

भगवान विष्णु का चौथा अवतार नरसिंह रूप में था। यानी जिसका आधा शरीर इंसान का और आधा शेर का था। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन भी माना जाता है। क्योंकि भगवान नरसिंह ने प्रकट होते ही राक्षस हिरण्यकश्यप को मारकर भक्त प्रहल्लाद को बचाया था।

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नई टिहरी

शक्ति और न्याय धर्म के प्रतीक नरसिंह देवता की जयंती पाटा गांव स्थित नरसिंह धाम में धूमधाम के साथ मनाई गई। इस दौरान भक्तों ने पूजन-अर्चन कर पुण्य लाभ अर्जित किया।

भगवान विष्णु के चौथे अवतार को भगवान नरसिंह के रूप में जाना जाता है। नरसिंह देवता खंभे को चीरकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को प्रकट हुए थे। शनिवार सुबह पाटा गांव के नरसिंह मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में नरसिह देवता की विशेष पूजा-अर्चना की गई।

विधायक किशोर उपाध्याय ने मंदिर में पहुंचकर देवता का आशीर्वाद लिया। कहा कि धरती पर पाप बढ़ने पर भगवान विश्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर भक्त की रक्षा की। उन्होंने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना कर विश्व मंगल कामना की। पंडित तिलकराम चमोली ने कहा कि भगवान नरसिंह के अवतार से दो बातें चरितार्थ होती हैं कि भगवान हमारे आस-पास हर एक वस्तु में हैं, हर एक इंसान में है। तभी तो भगवान नरसिंह खंभे से प्रगट हो गए। दूसरी यह कि जो कोई भी सच्चे मन से भगवान की आराधना करता है, भगवान उसका साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। प्रह्लाद सच्चा भक्त था, इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हो सका। इस दौरान मंदिर की ओर से विधायक को टेमरू का सोटा आशीर्वाद स्वरूप दिया गया।

कौन था हिरण्यकश्यप

पुराणों के मुताबिक कश्यप ऋषि के दो बेटे थे। पहला हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था। दोनों में राक्षसों वाले गुण थे। इस वजह से धरती को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वराह रूप लेकर कश्यप ऋषि के बेटे हिरण्याक्ष को मार दिया था।

भाई की मौत से दुखी और गुस्सा होकर हिरण्यकश्यप ने बदला लेने के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान लिया कि वो किसी इंसान से नहीं मरे सके और न ही किसी जानवर से। न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न किसी हथियार से मरे। ऐसा वरदान मिलने से वो खुद को अमर समझने लगा। फिर उसने इंद्र का राज्य छीना और ऋषियों को भी परेशान करने लगा। वो चाहता था कि सब उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा बंद करवा दी थी।

खम्बे से प्रकट हुए भगवान

हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद, भगवान विष्णु का भक्त था। भगवान की पूजा से रोकने के लिए उसे कई बार परेशान किया। फिर भी वो विष्णुजी की पूजा करता रहा। इस कारण हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने के लिए कोशिशें की लेकिन भगवान प्रह्लाद को हर बार बचा लेते थे।

एक दिन गुस्से में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से बोला, कहां है तेरा भगवान। सामने बुला। प्रह्लाद ने कहा, भगवान तो कण-कण में हैं। हिरण्यकश्यप ने कहा, अच्छा इस खम्बे में तेरा भगवान छिपा है? प्रह्लाद ने कहा, हां। ये सुनकर हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से खम्बे पर मारा, तभी खम्बे से भगवान नृसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को अपने जांघों पर रखकर उसकी छाती को नाखूनों से फाड़कर उसको मार डाला।

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