सुप्रभातम् : शांति और सौहार्द का व्यवहार जरुरी

Uttarakhand

दलाई लामा, (बौद्धधर्म गुरु)

बौद्ध धर्म के अनुसार प्राकृतिक पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के बीच अत्यधिक परस्पर निर्भरता है। मेरे कुछ मित्रों ने मुझे बताया कि मानव का मूल स्वभाव कुछ-कुछ हिंसक है, पर मैंने उनसे कहा कि मैं इस विचार से असहमत हूं।

यदि हम विभिन्न प्राणियों का अध्ययन करें, तो पाएंगे कि बाघ या शेर जैसे प्राणियों का जीवन दूसरों के जीवन को समाप्त करने पर निर्भर है। बाघ या शेर को प्रकृति से तीक्ष्ण-नुकीले दांत तथा नख मिले हैं। हिरण जैसे शांत और पूरी तरह शाकाहारी पशुओं के दांत छोटे होते हैं और नख भी।

इस मापदंड के आधार पर देखा जाए, तो मानव की मूल प्रवृत्ति अहिंसक है। जहां तक मानव का अस्तित्व बनाए रखने का प्रश्न है, तो मानव एक सामाजिक प्राणी है। हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मित्र की आवश्यकता होती है। मेरा पूर्ण विश्वास है कि मानव की मूल प्रवृत्ति अहिंसक है। मैं समझता हूं कि हमें न केवल दूसरे व्यक्तियों के साथ शांति और सौहार्द का व्यवहार करना चाहिए, अपितु प्राकृतिक पर्यावरण के साथ भी हमें ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। नैतिकता की बात की जाए, तो हमें अपने समूचे पर्यावरण के प्रति सजग होना चाहिए।

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