“शराब नहीं संस्कार”: मिल रहें हैं सकारात्मक परिणाम : सोमवारी लाल सकलानी

नशा मुक्ति के लिए गढ़ा था स्व निर्मित एक छोटा सा नारा, “शराब नहीं संस्कार”। मिल रहें हैं- सकारात्मक परिणाम। छपवाया था-शादी कार्ड के शीर्ष भाग पर।

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कवि : सोमवारी लाल सकलानी, निशांत


यूं तो नशे के खिलाफ समय-समय पर समाज के अनेकों लोगों ने प्रयास किए हैं और उसके सकारात्मक परिणाम भी नजर आए हैं। शराब विरोधी आंदोलन, उत्तराखंड में चर्चित रहा है। जिसका कहीं विरोध हुआ तो कहीं सुखद परिणाम सामने आए। सामूहिक नशे के खिलाफ विशेषकर शादी-ब्याह, किसी अनुष्ठान में आयोजक कुछ समय पूर्व अतिथियों को शराब परोसने में अपना बड़प्पन समझते थे लेकिन जब दुष्परिणाम सामने आए तो समय-समय पर जागृति भी आती रही।

इसी परिप्रेक्ष्य में किसी भी कार्य को करने के लिए साहस होना बहुत जरूरी है। कुछ समय पूर्व शादी- ब्याह में शराब का इतना प्रचलन हो गया था कि कुछ लोग कार्ड के ऊपर “आप कॉकटेल में सादर आमंत्रित हैं” लिखना भी शुरू कर दिए थे। इस कारण एक बुरी संस्कृति पनपने लगी थी। देखा- देखी गरीब व्यक्ति भी बेटे- बेटी की शादी में “कॉकटेल पार्टी” करने में अपने को गौरवान्वित महसूस करने लगे। जिसस तन -मन-धन  का नुकसान तो हुआ ही, साथ ही अनेकों विकृतियां समाज के अंदर उत्पन्न हुई।

इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने शराब के स्थान पर दूध- जलेबी आदि का प्रचलन किया। चंबा क्षेत्र में  युद्धवीर सिंह पुंडीर, शशि भूषण भट्ट तथा सर्वोदय समाज से जुड़े हुए प्रबुद्ध व्यक्तियों ने अपने बच्चों की शादी में शराब नहीं पिलाई।

इसी मुहिम के तहत कुछ वर्षों पूर्व मैंने एक नारा गढ़ा, “शराब नहीं- संस्कार” और अपने बेटी- बेटों की शादी में कार्ड के ऊपर स्पष्ट रूप से शीर्ष भाग में इसे छपवाया। यद्यपि यह एक साहसिक कार्य था लेकिन इसके सुखद परिणाम मिले और राड्स संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष सुशील बहुगुणा ने इसके लिए मुझे सम्मानित भी किया।

आज भी सुशील बहुगुणा और कुसुम जोशी जी नशा मुक्ति के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रही हैं।

मैं एक ऐसे गांव हवेली(सकलाना) से हूं जहां सामुहिक शराब परोसने में बरसों पूर्व प्रयास किया गया था और पंचायत में प्रस्ताव पास कर नियम बढ़ाया गया था कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक कार्यों में शराब पिलाएगा  तो उस पर ₹25000 अर्थदंड लगेगा। इस पहल में मेरी ग्राम पंचायत के पूर्व प्रधान गणेश सकलानी और मेरे भाई शिक्षक  कमलेश सकलानी का योगदान सर्वोपरि रहा है जो कि आज भी एक परिपाटी के रूप में चली आ रही है।

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नशा मुक्ति के क्षेत्र में सर्वोदय समाज, पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता तो अग्रणी भूमिका अदा करते ही रहे हैं लेकिन अन्य  व्यक्ति भी हैं जो बिना किसी नाम और सम्मान के इस पावन कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। शिक्षक डॉ राकेश उनियाल भी नशे के विरुद्ध बच्चों में जागृति लाने का कार्य करते रहते हैं।

“शराब नहीं-संस्कार” नारे का आज अनेकों संस्थाएं अनेक रूपों में उपयोग कर रही हैं। सुशील बहुगुणा तो ‘शराब नहीं संस्कार चाहिए’ के रूप में, इस पावन कार्य को आगे बढ़ाने का नियमित प्रयास कर रहे हैं।

नशा एक बुराई है और इससे समाज में पाप पनपता है। इसलिए सार्वजनिक स्थलों पर नशा करना समाज में विकृति उत्पन्न करता है। जिसके दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतने पड़ते हैं। व्यक्ति को तन- मन और धन तीनों रूपों से हानि उठानी पड़ती है।अपने बेटे की शादी में “शराब नहीं -संस्कार” स्व निर्मित नारे को जब मैंने शादी कार्ड के ऊपर छपपाया तो इस कार्य की अत्यंत सराहना हुई। सर्वप्रथम मेरे एक साथी विजय शंकर सिंह ने इस पहल के सार्वजनिक रूप से भूरी- भूरी प्रशंसा की थी और समाज में एक मैसेज पर गया था। जिसको पूरे क्षेत्र ने स्वीकार किया।

बेटी के शादी में तो लोगों को सहानुभूति होती है लेकिन बेटे की शादी में यदि आपने “आप मेंहदी में सादर आमंत्रित हैं”  लिख दिया तो पुरुष इसे काकटेल के रूप में इसे पार्टी का अंग मानता है।
आज भी समाज में महिलाएं नशा नहीं करती हैं। समाज में पुरुष वर्ग में भी एक बड़ा वर्ग नशा नहीं करता है। मात्र छोटे से वर्ग के लिए इस प्रकार की व्यवस्था करना, कार्य में खलल पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं  मिलता। सुशील बहुगुणा ने अपनी संस्था के माध्यम से असंख्य विवाह उत्सवों में अपनी ओर से पिठाईं अतिथियों को लगायी तथा बुरांश का जूस अपनी ओर से प्रदान किया। अपेक्षा की जाती है कि सार्वजनिक अनुष्ठानों में शादी- विवाह और सामाजिक कार्यों मे नशे पर अंकुश लगे क्योंकि सरकार से अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

सरकार को राजस्व चाहिए इसलिए सरकार चाहती है कि शराब की बिक्री को बढे और उन्हें राजस्व की प्राप्ति होती रहे।

.. पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने एक समय शराब मुक्ति की शासकीय पहल की थी लेकिन उनका यह प्रयास धरा का धरा रह गया। उसके बाद किसी भी सरकार ने इस क्षेत्र में ज्यादा दिलचस्पी नहीं उठाई क्योंकि इस अभियान से उन्हें दोहरा नुकसान होता है।

इसलिए “शराब नहीं -संस्कार” की मुहिम आगे बढ़े। शादी- ब्याह, सार्वजनिक स्थलों, जश्न के अवसर परशराब निषिद्ध रहे। पर्यावरण को विकृत करने वाले साधनों जैसे आतिशबाजी, पटाखे आदि का प्रयोग न करें तो उचित रहेगा।

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      (कवि कुटीर)
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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