मुक्ति मिलने पर चौरासी के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है

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प्रदीप बिजलवान बिलोचन

इस धरा में प्रारब्ध में हर मानव को को धन- सम्पदा, वैभव, प्रतिष्ठा, कुल आदि उसके पूर्व जन्मों के कर्मों से मिलता है। तब चाहे यह किसी के लिए पर्याप्त हो अथवा किसी के पास इसका अभाव, यह उस शख्स के पूर्व जन्मों के कर्मफल से प्राप्त होता है।

यहां यह बात कुछ अचरज भरी और कुछ नूतन है कि, जो हमारी ज्योतिष की घटनाएं और उसके ग्रह नक्षत्र आदि का फल प्राप्त होता है उसका अधिक से अधिक प्रभाव 23 से 24 साल तक होता है, उसके बाद उसका असर कर्मफलों के शुभ या अशुभ कर्मों से होता है ।

अब एक और रुचिकर तथ्य जब किसी भी मनुज का जन्म इस धरा पर होता है, तो उससे पूर्व अर्थात उसके पूर्व चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद उसे जो मनुष्य का शरीर प्राप्त होने वाली योनि में जो कर्म उसके द्वारा शुभ शुभ अथवा किसी को मन, वचन या कर्म से किसी को दुःख देने वाले होते हैं यही कर्मफल उसके अगले जन्म में नरक की घोर यातना सहने के बाद अथवा शुभाशुभ कर्मों के द्वारा स्वर्ग के सुख भोगने के बाद उसके अगले जन्म के लिए उसके प्रारब्ध का निर्माण करते हैं।

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यदि मुक्ति अथवा प्रभु का पद प्राप्त हो जाए तो इस चौरासी के चक्कर से वह स्वयं ही छुट जाता है ।

इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति असामयिक मौत जैसे किसी दुर्घटना आत्महत्या आदि के कारण समय से पहले ही प्राणांत हो जाते हैं वे विधाता द्वारा उनकी दी हुई आयु जिसे वे समय से पहले ही मृत्यु हो प्राणांत हो जाते हैं, उस आयु तक या कहें जो विधाता द्वारा निश्चित की गई उनकी आयु पूर्ण ना होने पर वे उस अवधि तक भूत प्रेत आदि की योनियों में भटकते रहते हैं ।

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तब उन महारौरब नर्क जैसे कष्टों से छूटने के बाद उनका अधम योनियों में जन्म होता है, योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश के अनुसार कि कर्मन्यीवाधी काराश्ते मां फलेशु कदाचन के अनुसार इसमें छुपे एक संदेश या यूं कहें भगवत प्राप्ति के एक और प्रकार के सन्दर्भ में कि, यदि आप चाहे प्रभु का नाम लो या नहीं लो और अपने कर्मों को पुण्य और पवित्र तथा निश्वार्थ भाव से करें तो वह भी प्रभु की भक्ति के समान होकर के प्रभु को प्राप्त करने का एक साधन भी।

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