सुप्रभातम्: परमात्मा की प्राप्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

84 लाख योनियाें में केवल मानव जन्म ही ऐसा है, जिसके द्वारा प्रभु की भक्ति संभव है। दुनिया के सभी रिश्ते नाते केवल दिखावे हैं। असली नाता तो इस तन में व्याप्त आत्मा का परमात्मा से ही है।

जीवन को सबसे बड़ा उपहार माना गया है, इसीलिए इसे बचाने के बहुत प्रयास किए जाते हैं। लेकिन हम भूल जाते हैं कि जीवन से बड़ा भी कुछ होता है, और उसे प्राप्त करने की कोशिश लगातार की जाना चाहिए। जीवन से बड़ा है परमात्मा। परमात्मा को प्राप्त करने के लिए खुद पर काम करना होगा। लोग दूसरे साधनों के जरिए ईश्वर को पाना चाहते हैं।

खुद को समझने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने जो पांच बड़े कारण बताए हैं, उन पर ध्यान दीजिए। इनमें पहला है पारदर्शिता यानी खुलापन, दूसरा होश, तीसरा बहिर्मुखता, चौथा सहमति का भाव और पांचवां मनोविक्षुब्धता। हालांकि इनको लेकर मनोवैज्ञानिकों में मतभेद हैं, लेकिन हम उनके चक्कर में न पड़ते हुए इस बात से सहमत हो जाएं कि यदि इन पांच पर काम करते हैं तो जान पाएंगे हम हैं कौन।

हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे ही लक्षणों को पांच कर्मेंद्रियों, पांच ज्ञानेंद्रियों और चार अंत:करण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) में उतार दिया है, जिनसे पूरा मनुष्य तैयार होता है। जैसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलना हो तो ताकत लगती है, ठीक ऐसी ही ताकत हमें शरीर के गुरुत्वाकर्षण से अपने आपको दूर करने के लिए लगानी होगी, तब ही आत्मा तक पहुंच पाएंगे और वहीं हमें इन पांच कारकों का अर्थ भी समझ में आएगा, अपने मनुष्य होने का बोध भी होगा। यही बोध जिंदगी को खुशनुमा बनाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *