हिंदू पंचाग में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। वैसे हर साल गणेश चतुर्थी के अगले दिन ही ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
पंडित उदय शंकर भट्ट
हिंदू पंचाग में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। वैसे हर साल गणेश चतुर्थी के अगले दिन ही ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा-अर्चना की जाती है।
ऋषि पंचमी का व्रत आज 11 सितंबर शनिवार को रखा जाएगा। ये व्रत दोषों से मुक्त होने के लिए किया जाता है। इसको विशेषकर महिलाएं रखती हैं। व्रत के पीछे मान्यता है कि जाने-अनजाने में सभी से कोई न कोई पाप हो ही जाता है। जैसे कहीं पांव पड़ने पर जीवों की हत्या, किसी को भला-बुरा कहने से वाणी का पाप लगता है। किसी को ठेस पहुंचाने से मानस पाप लगता है। अत: इस तरह के दोषों और पापों से मुक्ति के लिए यह व्रत फलदायी है।
कब आती है यह पंचमी
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को आती है ऋषि पंचमी। कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जगदग्नि और वशिष्ठ ऋषियों की पूजा इस दिन विशेष तौर पर होती है। इस व्रत में सप्तऋषियों समेत अरुंधती का पूजन होता है।
व्रत कथा सुनने का है महत्व
सप्त ऋषियों की पूजा हल्दी, चंदन, रौली, अबीर, गुलाल, मेहंदी, अक्षत, वस्त्र, फूलों आदि से की जाती है। पूजा करने के बाद ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनी जाती है। इस कथा सुनने का बहुत महत्व होता है।
क्या खाएं इस दिन
ऋषि पंचमी में साठी का चावल और दही खाए जाने की परंपरा है। हल से जुते अन्न और नमक इस व्रत खाना मना है। पूजन के बाद कलश सामग्री को दान करें। ब्राह्मण भोजन के बाद ही स्वयं भोजन करें।
ध्यान रखने वाली बातें
1. सुबह से दोपहर तक उपवास करें। पूजा स्थान को गोबर से लीपें।
2. मिट्टी या तांबे के कलश में जौ भर कर चौक पर स्थापित करें।
3. पंचरत्न, फूल, गंध, अक्षत से पूजन कर व्रत का संकल्प करें।
4. कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर, उसके दलों में ऋषियों और उनकी पत्नी की प्रतिष्ठा करें।
5. सभी सप्तऋषियों का 16 वस्तुओं से पूजन करें।
ऋषि पंचमी व्रत कथा
ऋषि पंचमी की व्रत कथा के बारे में भविष्य पुराण में लिखा गया गया है कि विदर्भ देश में एक उत्तम नाम का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था। उत्तक के दो बच्चे एक पुत्र और पुत्री थे। उत्तक ने विवाह योग्य होने पर बेटी का विवाह कर दिया। शादी के कुछ दिन बाद भी बेटी के पति की अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी बेटी अपने पिता के घर वापस आ गई।
एक दिन उत्तक की विधवा पुत्री सो रही थी। तभी उसकी मां ने देखा कि पुत्री के शरीर में कीड़े हो गए हैं। बेटी को इस हालत में देखकर सुशीला परेशान हो गई। इस बारे में उसने अपने पति को बताया। ब्राह्मण ने ध्यान लगाया और पुत्री के पूर्व जन्म के बारे में देखा। ब्राह्मण ने ध्यान में देखा कि उसकी बेटी पहले भी ब्राह्मण परिवार से थी लेकिन अशुद्धता में उसने पूजा के बर्तनों को छू लिया था।
इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उसने ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं रखा। जिसकी वजह से इस जन्म में उसे कीड़े पड़े। पिता के कहने पर विधवा बेटी ने दुखों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया और इससे उसे अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।