हिमशिखर खबर ब्यूरो
नई दिल्ली/नई टिहरी: वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक अब इस दुनिया में नहीं रहे। वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का आज सुबह (14 मार्च) को निधन हो गयाा। आज सुबह करीब 9 बजे वह बाथरूम में फिसल गये थे, उसके तुरंत बाद उनको घर के पास स्थित प्रतीक्षा अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उनको मृत घोषित कर दिया।
कई मीडिया संस्थानों में कर चुके काम
वेद प्रताप वैदिक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की हिंदी समाचार एजेंसी ‘भाषा’ के संस्थापक-संपादक के रूप में जुड़े हुए थे। इसके अलावा वे नवभारत टाइम्स में संपादक (विचार) थे। वैदिक भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष भी रहे। उनका जन्म 30 दिसंबर 1944 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होंने इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में जेएनयू से पीएचडी की। वैदिक को दर्शन और राजनीतिशास्त्र में दिलचस्पी थी। वे अक्सर इन मुद्दों पर अपने विचार रखते थे।
इन पुरस्कारों से हो चुके थे सम्मानित
डॉ. वैदिक को मीडिया और भाषा के क्षेत्र में काम करने के लिए कई सम्मान दिए गए। उन्हें विश्व हिन्दी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008), दिनकर शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण-पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपतराय सम्मान आदि दिए गए। वे कई न्यासों, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय। अध्यक्ष, भारतीय भाषा सम्मेलन एव भारतीय विदेश नीति परिषद!
विधायक किशोर उपाध्याय ने जताया दुख
विधायक किशोर उपाध्याय ने लिखा कि, वेद प्रताप वैदिक जी के निधन से पत्रकारिता जगत के एक युग का अवसान हो गया।हिन्दी के लिये समर्पित एक महा योद्धा का प्रयाण हो गया। जन सरोकारों विशेषतः पर्यावरणीय व नदियों की पवित्रता व अविरलता के लिये अनवरत संघर्ष की जिजीविषा के नश्वर शरीर की इति श्री हो गयी, लेकिन उनके कार्य अमर हैं और अमर रहेंगे। मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। प्रातः ही उनका लेख विवाह आदि के बारे में पढ़ रहा था, वे WhatsApp पर मुझे अपने लेख प्रेषित कर देते थे। लगभग सवा चार दशकों से उनसे सम्पर्क था। अभी उनसे Global Warming, Climate Change पर फ़ोन पर ही लम्बी बात-चीत हुई थी, दिल्ली में मिलकर आगे की रूप रेखा बनानी थी। मेरे इस विचार से वे सहमत थे कि हिमालय और गंगा में भारत को पुनः सोने की चिड़िया और विश्व गुरू बनाने की शक्ति है, हमें इस काम करना चाहिये, लेकिन प्रभु को कुछ और ही मंज़ूर था ।