मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा से घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। जानिए इस पर्व की महत्ता
पंडित उदय शंकर भट्ट
सनातन धर्म में गाय का विशेष महत्व है और माता का दर्जा प्राप्त है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गाय और गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी से गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। गायों का उल्लेख निर्णया मृत एवं कूर्म पुराण और भविष्य पुराण में मिलता है।
मान्यता है कि इस दिन गाय की सेवा करने से 33 कोटि देवी देवताओं की पूजा करने के बराबर पुण्य मिलता है। इसके साथ ही जो जातक किसी भी तरह के पितृदोष या ग्रह दोष से पीड़ित होते हैं, उन्हें भी इससे मुक्ति मिलती है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर गुरुवार को देशभर में गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि आज गुरुवार सुबह से शुरू हुई। आज गाय और गोविंद यानी भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सुख समृद्धि की वृद्धि होती है और कुंडली में उपस्थित पितृदोष तथा अन्य ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है।
दीपावली के बाद गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है। श्रीकृष्ण ने गौचर लीला इसी दिन से प्रारंभ की थी। कृष्ण ने जब माता यशोदा से गौ-सेवा की इच्छा व्यक्त की, तो माता यशोदा ने उन्हें अनुमति नहीं दी। लेकिन, बालकृष्ण के हठ के कारण उन्होंने शांडिल ऋषि से कार्तिक शुक्ल की अष्टमी तिथि का मुहूर्त निकला और तभी से गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
इस दिन गाय, बैल और बछड़ों को स्नान कराकर, उन्हें सीप से बने आभूषण पहनाकर उनके सीगो को रंगों के द्वारा सजाना चाहिए। इसके बाद हरा चारा और गुड़ खिलाकर उनकी आरती की जाती है और पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। गौ आरती करने के बाद उनके गाय माता की परिक्रमा करनी चाहिए। जिससे विशेष फलों की प्राप्ति होती है।