शिव आनंद में लीन रहता है ‘अघोरी’: भाई कमलानंद

भाई कमलानंद

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पूर्व सचिव, भारत सरकार


इन दिनों हम लोग राजस्थान की यात्रा पर हैं। कल हम पुष्कर पहुंच गए थे। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की यज्ञस्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में है। पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति भी स्वयं ब्रह्माजी ने की। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है।

आज सुबह पुष्कर में मन में अचानक अघोरियों के जीवन पर लिखने की इच्छा हुई। तो झट मन में कौंधा कि अघोरियों के बारे में हमारे समाज में कितनी भ्रांतियां बैठी हुई। जबकि असल सच्चाई कोसों दूर है। पढ़ा था कि अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहा जाता है। शैव संप्रदाय में अघोरपंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है। अघोरी की कल्पना करते ही जेहन में किसी ऐसे साधु की तस्वीर उभरती है जिसे देखकर ही डर लगता है। हो सकता है कि अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी आपको ठग सकता है लेकिन अघोरियों की पहचान यही है कि वे आमतौर पर किसी से कुछ मांगते नहीं हैं और बड़ी बात यह है कि वे बहुत ही कम संसार में दिखाई भी देते हैं। अघोर का अर्थ ही है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो।

अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं।

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अघोरी वह है, जो शिवत्व को अपने अंदर स्थापित कर सदा शिव आनंदसे युक्त होकर अपने आप में ही लीन रहता है। सिद्ध अघोरी की यही पहचान है जो अघोरेश्वर की तरह ही निर्लिप्त रहता है। सस्त विकारों, भेदभाव तथा पाशों के बंधन से छूट गया हो।

किसी समय में इनका दिखाई देना स्वयं भगवान शिव के दर्शन के जितना सौभाग्यदायक माना जाता था, लेकिन कुछ स्वार्थी तत्वों ने तो इस मार्ग का ग्रास कर उसे भय का रूप दे दिया है। अघोरी के लिए यह जरूरी है कि वह अघोरेश्वर के चिंतन में लीन रहे। भगवान अघोरेश्वर श्मशान में विराजमान हैं, सर्पों से लिप्त वह श्मशान भस्म को धारण किए हुए हैं। जिनके चेहरे पर आनंद ही आनंद है और कोई भाव है ही नहीं।

अघोरी को कुछ लोग औघड़ भी कहते हैं। अघोरियों को डरावना साधु समझते हैं लेकिन अघोर का अर्थ है जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। कहते भी हैं कि सरल बनना बहुत कठिन होता है। सरल बनने के लिए अघोरी कठिन रास्ता चुनते हैं। साधना पूरी होने के बाद अघोरी हिमालय में लीन हो जाता है।

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अघोर विद्या की उपासना बहुत कठिन है। इस साधना से पूर्व मोह-माया का त्याग बहुत जरूरी है। यह मनुष्य के लिए संभव नहीं है। कुछ आजीविका का साधन चलाने के लिए अघोरी बन बैठे हैं। बनावटी लोगों की वजह से अघोरी बदनाम हो रहे हैं।कहते हैं पूरे भारत में असली अघोरी साधु बहुत कम हैं लेकिन वे ऐसे कहीं आपको नहीं मिलेंगे। क्योंकि वे शिव साधना में हमेशा लीन रहते हैं। वे किसी को डराते नहीं। डराने वाले अघोरी साधु नहीं हो सकते।

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