पंडित उदय शंकर भट्ट
सावन के महीने में भगवान शिव पर गंगाजल के साथ-साथ बेलपत्र चढ़ाने का विधान है। शिवपूजा में बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। जब भी भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना होती है, तब शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाया जाता है। वैसे तो अभी बारिश के दिन हैं और बिल्व पत्र आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन अगर बिल्व पत्र नहीं मिल रहे हैं तो शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र को ही धोकर फिर से भगवान को चढ़ाया जा सकता है।
बिल्व पत्र कई दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। शिव पुराण में लिखा है कि एक ही बिल्व पत्र को बार-बार धोकर फिर से पूजा में उपयोग किया जा सकता है। लेकिन बिल्व पत्र कटा नहीं होना चाहिए।
बिल्व पत्र के बिना अधूरी रहती है शिव पूजा
शिव पूजा में बिल्व पत्र अनिवार्य रूप से रखना चाहिए। इन पत्तियों के बिना शिव पूजा अधूरी ही मानी जाती है। शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र को धोकर फिर से भगवान को चढ़ा सकते हैं।
घर में भी लगा सकते हैं बिल्व पत्र का पौधा
अभी बारिश का समय है और इन दिनों में लगाए गए पौधे पनपने की काफी अधिक संभावनाएं रहती हैं। अगर आप चाहें तो अपने घर के आंगन में भी बिल्व का पौधा लगा सकते हैं। बिल्व पत्र का पेड़ घर के बाहर या आसपास हो तो घर के कई वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक बिल्व के पेड़ में लगने वाला फल बहुत पौष्टिक होता है और इसके नियमित सेवन से हम कई बीमारियों से बचे रह सकते हैं।
बिल्व के पेड़ में होता है देवी-देवताओं का वास
बिल्व वृक्ष को शिव जी का ही एक स्वरूप माना गया है। इसका एक नाम श्रीवृक्ष भी है। श्री महालक्ष्मी का एक नाम है। इस वृक्ष की जड़ों में देवी गिरिजा, तने में देवी महेश्वरी, शाखाओं में देवी दक्षायनी, पत्तियों में देवी पार्वती, फूलों में मां गौरी और फलों में देवी कात्यायनी वास करतीं हैं। पत्तियों में देवी पार्वती का वास होने से शिवलिंग पर इसे खासतौर पर चढ़ाया जाता है।