- स्वर्गीय सुंदर लाल बहुगुणा के 97 वें जन्मदिन पर विशेष
- फिर से लहलहाने लगा है मथुरा का गहवर वन
- स्वर्गीय बहुगुणा की मदद से वन बचाने की मुहिम को मिला था मुकाम
- गहवर वन बचाओ आंदोलन के बंशीधर अग्रवाल कर रहे हैं अभयारण्य घोषित करने की मांग
- वर्ष 1997 में रमेश बाबा और बंशीधर अग्रवाल के साथ वन बचाने के लिए बहुगुणा बैठे थे उपवास पर
प्रदीप बहुगुणा
बरसाना (मथुरा)। मथुरा के बरसाने का गहवर वन एक बार फिर से लहलहाने लगा है। इसको बचाने की मुहिम में वर्ष 1997 में यहां के संत रमेश बाबा और चिपको नेता सुंदर लाल बहुगुणा जुड़े तो जिला प्रशसन को इसके लगभग 7 हेक्टेयर क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करना पड़ा। अब गहवर वन बचाओ आंदोलन के बंशीधर अग्रवाल इसे अभयारण्य घोषित करवाने की मुहिम में जुट गए हैं।
कभी राधा-कृष्ण की लीलाओं के लिए ख्यात सघन गहवर वन खनन और अतिक्रमण का शिकार हो गया था। यहां के प्रमुख संत रमेश बाबा इसके विरोध में आगे आए। मथुरा के युवा व्यवसायी बंशीधर अग्रवाल ने वन बचाने के लिए गहवर वन बचाओ आंदोलन समिति बनायी। उन्होने चिपको आंदोलन के जनक सुंदर लाल बहुगुणा को मुहिम में साथ देने के लिए गहवर वन आमंत्रित किया। बकौल अग्रवाल उन्होंने उजाड़े जा रहे गहवर वन की दशा के बारे में वर्ष 1997 एक पोस्टकार्ड चिपको नेता को भेजा तो वे तत्काल वहां पहुंच गए। रमेश बाबा और चिपको नेता बहुगुणा का साथ मिलने से आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत ने 7 हेक्टेयर के गहवर वन क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करवा दिया।
आरक्षित वन घोषित होने के बावजूद भी वहां खनन और अवैध पेड़ कटान नहीं रुका तो रमेश बाबा और बंशीधर अग्रवाल 11 जुलाई 2000 को वहां पहाड़ी पर उपवास पर बैठ गए। उनका उपवास 13 दिन तक चला और शुरुआत के दो दिन सुंदर लाल बहुगुणा भी वहां उनके साथ उपवास पर बैठे। वहां से लौटकर उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों को गहवर वन बचाओ आंदोलन के बारे में बताया और वहां वन संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। अब हर साल गहर वन में वन परिक्रमा और वन बचाओ आंदोलन का सम्मेलन होने लगा। 21 मई 2021 को अपने निधन से पूर्व स्वर्गीय बहुगुणा गहवर वन बचाओ आंदोलन की मुहिम में 15 बार शामिल हुए। स्वर्गीय बहुगुणा के 97 वें जन्मदिन के मौके पर उनके पु़त्र प्रदीप बहुगुणा गहवर वन गए। वहां संत रमेश बाबा ने उन्हें बताया कि कि सुंदर लाल बहुगुणा के सहयोग से ही गहवर दवन को बचाने में कामयाबी मिल पायी। रमेश बाबा को उनके निधन की भी जानकारी नहीं थी। बाबा ने उनके निधन पर दुख जताया और स्वर्गीय बहुगुणा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
फोटो कैप्शनः गहवर वन बचाने को 1997 मे बरसाना पहुंचे सुंदर लाल बहुगुणा साथ में रमेश बाबा और बंशीधर अग्रवाल