हिमशिखर धर्म डेस्क
दीपावली सनातन संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहार है। पूरा कार्तिक माह घरों तथा व्यापारिक संस्थानों की स्वच्छता व सजावट में लग जाता है। दीपावली के इस दृष्ट बाह्य और लौकिक रूप में कौन-सा आंतरिक तत्व छिपा है, जिसे जानने के पश्चात दीपावली हमें हमारे मूल वैदिक परंपराओं की नींव से जोड़ देती है।
श्रीरामचरितमानस में भक्ति के सोपानों का वर्णन अरण्यकांड में है, जिसका विश्लेषण भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण की जिज्ञासा-समाधान में करते हैं। उसी तरह ज्ञान प्राप्ति के सोपानों का वर्णन मानस के अंतिम उत्तरकांड में काकभुशुंडि जी गरुड़ जी के समक्ष करते हैं
वस्तुत: ज्ञान-प्रकाश के अनावरण का नाम ही दीपावली है, जिसमें संसार में जड़ और चैतन्य के मिथ्या भेद को जानकर साधक को अपने अंदर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित करना है। इसके पश्चात ही वह परम तत्व का साक्षात्कार कर अपनी आंतरिक और बाह्य ग्रंथियों को सुलझा सकता है। अखंड सुख, शांति और आनंद को प्राप्त करना ही दीपावली का प्रकाश है, इसीलिए इसे अमावस्या की घोर अंधकारमय रात्रि में मनाया जाता है।
दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस पर्व को मनाए जाने की मूल अवधारणा अधर्म पर धर्म की विजय और अंधेरे पर उजाले की जीत है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’।
जिस प्रकार एक दीपक अनेकों दियों को जला सकता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्ज्वलित कर सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। हिंदू दर्शन में इस भौतिक शरीर और मन से परे अगर कुछ है तो वह शुद्ध अनंत और शाश्वत है, जिसे आत्मा कहा जाता है।
दीपावली आध्यात्मिक अंधकार को आंतरिक प्रकाश से नष्ट करने का भी त्योहार है। दीपक जलने से चारों ओर प्रकाश फैलने से अंधकार रूपी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। कार्तिक माह में आंधी का प्रकोप न होने के कारण आंगन में रखा हुए दिए बुझते नहीं हैं। इससे यह बोध होता है कि कामना-वासना की हवा का प्रकोप न हो तो अंतर की ज्योति निश्चल रहती है और अंतर जगत प्रकाशमय होता है।