हिमशिखर धर्म डेस्क
विनोद चमोली
सनातन धर्म में भगवान शिव के सिद्ध मंदिरों के साथ भैरव जी के मंदिर भी विराजमान हैं। भैरव जी के बिना भगवान शिव के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। चाहे काशी के बाबा विश्वनाथ हों या फिर उज्जैन के बाबा महाकाल। ठीक इसी तरह हिमालय स्थित केदारनाथ धाम में भगवान भूकुंड भैरव का मंदिर है। यहां पर भी श्रद्धालु बाबा के दर्शनों के बाद भैरव जी के भी दर्शन करते हैं। 6 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे। लेकिन इस दिन बाबा केदार की आरती और पूजा शुरू नहीं हुोगी। दरअसल, मान्यताओं और परम्पराओं के अनुसार केदारनाथ जी के कपाट खुलने के बाद जो भी पहला मंगलवार या शनिवार पड़ता है, उस दिन दिन भूकुंड भैरव जी के कपाट खोले जाते हैं। भूकुंड भैरव के कपाट खुलने के बाद ही बाबा केदारनाथ की पूजा-आरती शुरू की जाती है। ऐसे में 7 मई शनिवार को बाबा भैरव के कपाट खुलने के बाद धाम में विधिवत पूजा-अर्चना और आरती शुरू हो जाएगी।
बिना छत्त के स्थित है यह मंदिर
भूकुंड भैरव केदारनाथ मंदिर से आधा किमी दूर दक्षिण दिशा में स्थित है। यहां बाबा भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं। लेकिन खास बात यह है कि मंदिर में कोई छत्त नहीं है। शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तब भूकुंड भैरव ही केदारनाथ धाम की रखवाली करते हैं।
हवन-अभिषेक के बाद खुलेंगे कपाट
7 मई शनिवार को शुभ मुहूर्त में केदारनाथ धाम के बाबा भैरव का अभिषेक किया जाएगा। भगवान को शहद, घी और तेल से स्नान कराने के बाद हवन किया जाएगा। भगवान भैरव जी को नया वस्त्र चढ़ाकर, पुष्प, अक्षत से श्रृंगार कर भोग चढ़ाने के बाद आरती की जाएगी। इसके साथ सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करने के बाद बाबा भूकुंड भैरव के कपाट खोल दिए जाएंगे। भैरवनाथ जी के कपाट खुलने के साथ ही केदारनाथ मंदिर में पूजा-आरती भी शुरू हो जाएगी। प्रधान पुजारी गंगाधर लिंग़ के अनुसार भूकुंड भैरव केदारनाथ के क्षेत्रपाल देवता हैं।
कौन हैं भगवान भैरव
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। यूं तो भगवान भैरव के 52 रूप प्रचलित हैं लेकिन 8 रूप मुख्य रूप से ज्ञात हैं। इनको संयुक्त रूप से अष्ट भैरव के नाम से जाना जाता है। भैरव भी भगवान शिव के स्वरूप हैं। लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से पुकारा जाता है। समाज में भैरव बाबा के चरित्र का भयावह चित्रण कर लोगों के मन में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भी देखने को मिलता है। दरअसल भैरव वैसे नहीं हैं जैसे कि उनका चित्रण किया जाता है। उनका चरित्र भी बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है। उनका कार्य भगवान शिव की नगरी की सुरक्षा करना और दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को दंड देना है।