सुप्रभातम्: टूरिस्ट बनकर भारत आई थी जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग, गोसेवा का ऐसा भाव जगा कि भारत में बन गई सुदेवी दासी

आज हम आपको एक महिला के बारे में बताने जा रहे हैं। ये एक कहानी है विदेशी बाला की, जाे आई ताे इंडिया घूमने और बृज क्षेत्र में भजन करने, लेकिन गाै सेवा की ऐसी मुरीद हाे गई कि आज वे भारत में 45 साल से रह रही हैं और बीमार, जख्मी गाेवंश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिए, यह क्रम अनवरत जारी है। उन्होंने न सिर्फ अपने जीवन को जरूरतमंदों के लिए समर्पित किया बल्कि कई बेरोजगारों के रोजगार का भी सहारा बनीं। इस लेख में जानते हैं जर्मन की फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी के जीवन से जुड़ी बातें।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

बात साल 1978 की है, जब जर्मनी की एक युवती भारत घूमने आई थी, उसके पिता भारत में जर्मनी के राजदूत थे। उन्होंने अपनी बेटी को समझाया, लेकिन सुदेवी ने अपना निश्चय नहीं बदला। युवती का नाम फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग था जो देश के कई हिस्सों को घूमते हुए कृष्ण की धरती मथुरा वृंदावन पहुंच गई। जहां उसकी दुनिया बदल गई, नाम बदल गया, धर्म बदल गया, अब वो सुदेवी दासी के नाम से जानी जाती हैं। उनका एक और नाम भी है, ‘‘हजार बछड़ों की मां।“

जब सुदेवी भारत आई थीं ताे उनकी उम्र महज 20 साल थी। गाे सेवा की सच्ची लगन से धीरे धीरे वे ऐसी रम गई और आज 65 की उम्र में खुद ही बीमार गायाें की सेवा में जुटी रहती हैं। हालांकि अब इस सेवा के लिए कई व्यक्ति काम करते हैं, जाे चारा, उपचार, सूचना पर जख्मी गाेवंश काे उठाने, दवा पट्टी लगाने आदि काम में वेतन पर लगे हुए हैं। गोशाला में पूरे दिन हरिनाम संकीर्तन सुनाई देगा सुरभि गोशाला में 24 घंटे हरिनाम संकीर्तन सुनाई देता है।

गाय को तड़पते देखा तो सेवा करने का निर्णय किया

मथुरा में गोवर्धन परिक्रमा करते हए राधा कुंड से कौन्हाई गाँव की तरफ आगे बढ़ने पर गाय-बछड़ों के रंभाने की आवाज़ आती है। यहां पर धुंधले अक्षरों में सुरभि गौसेवा निकेतन लिखा है। ये वही जगह है जहां इस वक्त करीब 2500 गाय और बछड़े रखे गए हैं। देश की दूसरी गोशालाओं से अलग यहां की गाय ज्यादातर विकलांग, चोटिल, अंधी, घायल और बेहद बीमार हैं। इस गोशाला की संचालक सुदेवी दासी हैं। सुदेसी दासी 45 साल पहले टूरिस्ट वीजा पर भारत घूमने आईं थीं, वे यहां अपना वक्त पूजा पाठ आदि में बिताती थीं। इसी बीच किसी ने उन्हें गाय पालने की सलाह दी। सलाह मानकर उन्होंने गाय पाल ली। धीरे—धीरे उन्हें गाय से प्रेम होने लगा। एक दिन उन्हें ब्रज में सड़क किनारे एक बीमार गाय तड़पते हुए दिखी। गाय की नाजुक हालत देखकर उन्होंने गायों की सेवा करने का निर्णय लिया। उन्होंने गोवर्धन के पास कोन्हाई गांव में जमीन किराये पर ली और राधा सुरभि नाम से एक गौशाला की शुरुआत की। तब से आज तक उन्होंने अपना पूरा जीवन इन गायों को ही समर्पित कर दिया है। लोग उन्हें यहां सुदेवी के नाम से पुकारने लगे। इसके बाद गोसेवा उनके जीवन का अभिन्न अंग हो गया। वो पिछले चार दशकों में हजारों गायों को नया जीवन दे चुकी हैं।रही

करीब डेढ़ हजार गायों की सेवा कर रहीं

सुदेवी की गौशाला में बीमार गायें रहती हैं। जिनकी देखरेख और सेवा का जिम्मा सुदेवी और उनके साथ कााम कर रहे कुछ गौसेवकों पर है। रोजाना गौशाला की एंबुलेंस करीब आठ से 10 बीमार गायों को गौशाला पर लाती है। वे उनकी मां की तरह देखरेख करती हैं। उनके जख्मों को भरकर उनका इलाज करती हैं।

One thought on “सुप्रभातम्: टूरिस्ट बनकर भारत आई थी जर्मनी की फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग, गोसेवा का ऐसा भाव जगा कि भारत में बन गई सुदेवी दासी

  1. मूल जर्मनी की सुदेवी दासी का गायों के लिए 20 साल से 65 की उम्र में 45 सालों तक ‘सुरभि गौसेवा निकेतन’ में किया गया सेवा भाव का कार्य प्रशंसनीय है।

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