सुप्रभातम् : मानव जीवन और मूल्यवान रत्न

मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है। मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जिसमें हम भगवान को पा सकते हैं। यह मनुष्य देह अत्यंत दुर्लभ और क्षण भंगुर है। मनुष्य शरीर के समान सर्वश्रेष्ठ शरीर कोई नहीं है। व्यक्ति को सांसारिक मोह माया त्याग कर, अपने जीवन का कुछ समय ईश्वर भक्ति में लगाना चाहिए। अगर मनुष्य अपने सच्चे मन से ईश्वर से प्रार्थना करता है तो ईश्वर उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण करता है।


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मुनि प्रमाण सागर

एक बार नंदन वन के बंदर को रत्नों की पोटली मिल गई। बंदर ने एक रत्न को मुंह में डाला। स्वाद नहीं आया, तो रत्न नीचे फेंक दिया। दूसरे रत्नों के साथ भी ऐसा ही किया। पोटली खाली हो गई। बाद में पोटली भी नीचे डाल दी। सब जानते हैं कि बंदर रत्नों का महत्त्व नहीं समझते। जीवन के साथ हमारा भी ऐसा ही व्यवहार है।

हमारा जीवन भी किसी मूल्यवान रत्न की पोटली से कम नहीं। जो इसके मूल्य को समझता है, महत्त्व को जानता है, वह इसको संभाल कर रखता है, इसका समादर करता है। जो इसके मूल्य और महत्त्व से अनभिज्ञ होते हैं, वे सब उस बंदर की तरह अपने जीवन की इन बेशकीमती मूल्यवान सांसों को यूं ही व्यर्थ कर देते हैं। महत्त्व जीवन को समझने का है और जीवन को समझ कर ठीक ढंग से जीने का है।

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