हिमशिखर धर्म डेस्क
कर्ण को युद्ध में मार गिराने के लिए अर्जुन पाशुपत अस्त्र प्राप्त करना चाहता था। अपने इस कार्य को पूरा करने के लिए वह इंद्रनील पर्वत पर शिवजी की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर तपस्या करने बैठ गया।
उसकी कठिन तपस्या से समूचा वन प्रदेश जल उठा। वहां रहने वाले ऋषि-मुनि घबरा गए।
वे भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव पार्वती सहित अपने आसन पर विराजमान थे।
भगवान शिव की स्तुति करने के पश्चात ऋषि-मुनियों ने कहा – “भगवन! एक तपस्वी जंगल में घनघोर तपस्या कर रहा है। उसकी तपस्या के हवन-कुंड की आग से समूचा जंगल तपने लगा है।
हम लोगों का वहां रहना मुश्किल हो गया है। कृपया हमें उससे मुक्ति दिलवाइए।”
भगवान शिव ने उन्हें आश्वस्त किया। फिर ऋषि-मुनि वापस अपनी कुटिया की ओर लौट गए। जब ऋषि-मुनि चले गए तो शिव पार्वती से बोले – “वह निश्चित रूप से अर्जुन ही है देवी! उन ऋषियों का अनुमान बिल्कुल सही है।”
पार्वतीजी बोलीं – “लेकिन वह कठिन तप किसलिए कर रहा है स्वामी! इसका पता लगाना चाहिए। आपने ऋषि-मुनियों को आश्वासन भी दिया है।
शिवजी बोले – “वह पाशुपत अस्त्र प्राप्त करने के लिए तप कर रहा है देवी! बिना पाशुपत प्राप्त किए वह अपना तप भंग नहीं करेगा।”
“तो फिर!” पार्वती बोलीं।
शिव बोले – “हम वेश बदलकर उसके पास पहुंचते हैं। उसकी परीक्षा करेंगे कि वह पाशुपत अस्त्र धारण करने का अधिकारी है भी या नहीं। अगर वह अपनी परीक्षा में सफल हुआ तो मैं उसे पाशुपत दे दूंगा।”
शिव और पार्वती दोनों ने वेश बदल लिया। शिव किरात बन गए और पार्वती किरात की पत्नी।
शिव के गणों ने स्त्रियों का वेश धारण कर लिया। कुछ गण पुरुष वेश में ही किरात का वेष धारण किए उनके साथ चल पड़े। वे सब उस उपवन में पहुंचे जहां अर्जुन शिव की प्रतिमा के सम्मुख बैठा कठिन तप कर रहा था। निकट ही धरती पर उसके अस्त्र-शस्त्र रखे हुए थे।
उस वन में एक विकट राक्षस रहता था। सारे ऋषि-मुनि उससे भयभीत रहते थे। राक्षस ने अर्जुन को अकेल बैठे तप में लीन देखा तो उसने एक सूअर का वेश बनाया और वह सीधा अर्जुन की ओर झपटने को तैयार हुआ।
तभी शिव और पार्वती की निगाह अर्जुन पर झपटने को तैयार उस सूअर रूपी राक्षस पर पड़ी।
यह देख पार्वती बोलीं – “देखो, देखो भगवन! वह राक्षस अर्जुन पर झपटने की तैयारी कर रहा है। उसे समाप्त कर दो अन्यथा वह आपके भक्त को मार डालेगा।”
शिव बोले – “वह ऐसा नहीं कर सकेगा देवी! इससे पहले कि वह अर्जुन के पास पहुंचे मैं उसे समाप्त कर दूंगा।”
यह कहकर शिव ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। वे बाण छोड़ने को उद्यत हुए। लेकिन अर्जुन भी सजग था। सूअर के भागते कदमों की उसे भी आहट मिल चुकी थी। अर्जुन फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपना धनुष लेकर उस पर बाण चढ़ा लिया।
किरात रूपी शिव और अर्जुन, दोनों के बाण एक साथ छूटे और सूअर रूपी राक्षस के शरीर में जा घुसे। सूअर के मुंह से दिल दहला देने वाली चीत्कारें फूट निकलीं।
समूचा जंगल कांप उठा। मरते ही उसका मायावी रूप समाप्त हो गया और वह एक पहाड़ की तरह जमीन पर धड़ाम से आ गिरा।
किरात बने भगवान शिव के गणों ने जय-जयकार करनी आरंभ कर दी।
किरात और अर्जुन दोनों एक साथ मृत सूअर के पास पहुंचे। अर्जुन मुस्कुराते हुए बोला – “निशाना तो तुमने ठीक ही लगाया किंतु, तुम चूक गए। तुम्हें इतने विलंब से तीर नहीं चलाना चाहिए था। देखो, मेरा निशाना कितना सच्चा है। एक ही बाण में सूअर को यमलोक पहुंचा दिया। च”
किरात बोला – “लेकिन यह तो मेरे बाण से मरा है| मेरे सब साथी जानते हैं कि बाण मैंने पहले चलाया था। सूअर मेरे बाण से मरा है, न कि तुम्हारे बाण से।”
अर्जुन की भृकुटि तन गई। वह क्रोध में आकार बोला – “बाण मेरा लगा है। सूअर मेरे ही बाण से मरा है। न कि तुम्हारे बाण से।”
शिव बने किरात ने भी गुस्से से भरकर कहा – “तो फिर ठीक है। इसका फैसला युद्ध से हो जाए। जो जीत जाए, वही इसे मारने का वास्तविक अधिकारी माना जाएगा।”
फिर दोनों में भयानक युद्ध छिड़ गया। दोनों ओर से तीरों की वर्षा होने लगी। एक बाण छोड़ता तो दूसरा तत्काल उसे काट देता।
काफी देर तक यह युद्ध चलता रहा। अर्जुन के सारे बाण समाप्त हो गए| वह चिंतित होकर सोचने लगा – ‘आश्चर्य है| मेरे सारे बाण समाप्त हो गए। किंतु किरात को एक खरोंच तक भी नहीं आई है। यह कैसा चमत्कार है?’
यह सोच उसने धनुष उठाया और उसकी डोरी से किरात को फंसा लिया| लेकिन अगले ही क्षण उसे एक तीव्र झटका-सा लगा| किरात ने न सिर्फ स्वयं को ही मुक्त करा लिया बल्कि अर्जुन को भी ऊपर उठाकर दूर पटक दिया।
अर्जुन का पूरा जिस्म दर्द से भर उठा| गुस्से में भरकर उसने तलवार उठा ली और किरात पर टूट पड़ा| लेकिन किरात के शरीर से टकराते ही उसकी तलवार टूट गई।
अर्जुन गुस्से से पागल हो उठा| वह पेड़ उखाड़-उखाड़ कर किरात पर प्रहार करने लगा| किंतु किरात तो जैसे फौलाद का बना हुआ था| उस पर रंचमात्र भी असर न हुआ| वह उसी तरह खड़ा मुस्कुराता रहा।
अर्जुन बहुत थक चुका था| उसका रोम-रोम पीड़ा से बेहाल हो गया| बेबस होकर वह पुन: भगवान शिव की प्रतिमा के पास पहुंचा और उनकी स्तुति करने लगा…
“हे त्रिशूलधारी! यह कैसा चमत्कार है| एक साधारण-सा किरात और इतना बल| अब तुम्हीं मेरी रक्षा करो प्रभु!”
अर्जुन ने फूलों की माला शिव की प्रतिमा के गले में डाली| आराधना करते ही उसके शरीर में नवीन स्फूर्ति पैदा होने लगी।
वह पुन: स्वस्थ होकर किरात की ओर बढ़ा, लेकिन अगले ही क्षण उसके आश्चर्य का पारावार न रहा| शिव की प्रतिमा पर उसके द्वारा चढ़ाई गई फूलों की माला किरात के गले में झूल रही थी।
अर्जुन तुरंत समझ गया कि किरात कोई और न होकर स्वयं साक्षात शिव हैं| वह किरात के चरणों में पड़कर रुंधे गले से बोला…
“मुझसे बड़ी भूल हुई भगवन! मुझ निर्बुद्धि को क्षमा कर दें| मैं आपको पहचान नहीं सका था| अनजाने में ही मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है|”
भगवान शिव अपने स्वरूप में प्रकट हो गए| उन्होंने अर्जुन की बांहें पकड़कर उसे उठाया और कहा – “उठो पुत्र! तुम्हारी परीक्षा पूरी हुई| तुमने कोई अपराध नहीं किया है।
किरात का स्वरूप मैंने तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही धारण किया था| तुम परीक्षा में सफल हुए| मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं| मांगो पुत्र! क्या मांगते हो|”
अर्जुन बोला – “भगवान! मुझे पाशुपत अस्त्र चाहिए| ताकि युद्ध में मैं अपने शत्रु का संहार कर सकूं|”
शिव बोले – “पाशुपत तुम्हें मिल जाएगा पुत्र! लेकिन तुम्हें पहले उसे चलाने की विधि सीखनी पड़ेगी| अन्यथा वह तुम्हारे लिए ही विनाशकारी सिद्ध हो जाएगा।”
यह कहकर भगवान शिव ने उसे पाशुपत अस्त्र दिया और साथ ही उसे चलाने की विधि समझाते हुए बोले – “पुत्र! तुम इसे सिर्फ धर्म के कल्याण हेतु ही प्रयोग कर सकोगे।
याद रखना क्रोध में इसे किसी निर्बल आदमी पर भूल से भी प्रयोग मत कर देना। और हां, इसका प्रयोग सिर्फ एक ही बार किया जा सकता है|”
पाशुपत अस्त्र देकर शिव तो पार्वती सहित अंतर्धान हो गए और अर्जुन पाशुपत लेकर अपने भाइयों से आ मिला। बाद में इसी पाशुपत से उसने महाभारत युद्ध में कर्ण का वध किया था।