भगवान श्रीराम भगवान श्रीहरि के अवतार थे और धरती पर उनका अवतरण दुष्टों को दंड देने और अपने भक्तों की रक्षा के लिए हुआ था। भगवान श्रीराम के साथ वनवास से लेकर और उसके बाद कई प्रमुख पात्र जुड़ते रहे और उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए। रामायण के एस ऐसे ही प्रमुख पात्र हनुमान जी हैं, जो श्रीराम के अनन्य भक्त और उनकी परछाई के समान रहे। श्रीराम से जुड़ने के बाद हनुमानजी ने उनका हर कदम पर साथ दिया और उनके साथ साए की तरह रहे। जानिए अब कलियुग में हनुमान जी का क्या राम काज शेष रहा?
हिमशिखर धर्म डेस्क
हनुमान जी सांसारिक ताप से पीड़ित जीवों को ज्ञान प्रदान कर ब्रह्म की, हरि विमुख जीवों को भक्ति मार्ग पर अग्रसर कराने वाले हैं। हनुमान जी को समझने से पूर्व हमें उनके ध्येय वाक्य को समझना होगा। श्रीहनुमान जी का ध्येय वाक्य है ‘राम काज कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम’ हनुमान जी बिना विश्राम किए हुए निरंतर रामजी के काज में लगे हुए हैं। हनुमान जी का प्राकट्य राम काज के लिए ही हुआ है-
राम काज लगि तव अवतारा।
राम काज करिबे को आतुर।
रामचन्द्र के काज संवारे।
उनका अवतरण राम-काज के लिए, उनकी आतुरता राम-काज के लिए, वस्तुतः उनकी सम्पूर्ण चेतना ही राम-काज संवारने के लिए है, इसके बिना इन्हें चैन नहीं और बस निरंतर प्रभु श्रीराम के काज को आज तक संवारे जा रहे हैं। निरंतर! मन में शंका उठेगी की अब कौन सा काम बाकी है। राम काज तो कब का पूरा हुआ। सुग्रीव को उसका राज मिल गया, सीताजी की खोज हो गयी, लंका भी जल गयी, संजीवनी बूटी भी आ गयी, रावण मारा गया और राम राज की स्थापना भी हो गयी।
अब क्या राम काज शेष रहा?
पर क्या सृष्टि के कण-कण में रमण करने वाले श्रीराम की रामायण इतनी ही है? क्या किसी काल विशेष की घटनाओं का वर्णन ही रामायण है?
नहीं! हरि अनंत हैं उनकी कथा अनंत है। सम्पूर्ण जगत सियाराम मय है। कण कण में राम है, कण-कण में रामायण का विस्तार है। युग विशेष की सीमा में तो हनुमान ने सीता की खोज पूरी कर ली और उनका मिलन भी राम से हो गया। लेकिन यह जो जीव ब्रह्म अंशी जीव ‘आत्माराम’ है, इसकी सीता अर्थात् शांति का हरण विकार रूपी रावण का वध करवाकर करा देना ही हनुमान का निरंतर राम काज है।
श्रीशंकराचार्य कहते हैं-‘शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते’। अब जो जीव की ये शान्ति है यह खो गयी है। खो नहीं गयी वस्तुतः उसका हरण हुआ है। सीता धरती की बेटी है अर्थात् हमारा धरती से जुड़ाव, सरल संयमित जीवन ही शांति प्रदान करता है।
लेकिन जहां सोने की लंका अर्थात अपरिमित महत्वकांक्षाओं से प्रबल भौतिक संसाधनों की लालसा से विकार बलवान होंगे, लोभ प्रबल होगा, बस वहीं हमारी शांति लुप्त हो जाएगी। हम विकारों के दुर्गुणों के वश हुए भौतिकता में अपनी शांति तो तलाश रहे हैं लेकिन वह मिल नहीं रही, मिल भी नहीं सकती है। जब तक रावण का मरण न होगा राम से सीता का मिलन भी ना होगा।
लेकिन रावण को मारने से पहले सीता की खोज जरूरी है और यह दोनों काम हनुमान के बिना संभव नहीं हैं। हनुमान अर्थात् जिसने अपने मान का हनन कर दिया है।
हम अपने जीवन में अहंकार का नाश करके ही अपनी आत्मा रूपी राम से शांति रूपा सीता का मिलन संभव कर सकते हैं। और आगे श्रीराम का काज क्या है? राम की प्रतिज्ञा है-निशिचर हीन करहुं महि। राम का लक्ष्य है निशिचर विहीन धरा, अर्थात तामसी वृत्तियों का दमन और सात्विकता का प्रसार। जब-जब धर्म की हानि होती है यानी संसार की धारणा शक्ति समाज के अनुशासन, पारस्परिक सौहार्द का, व्यक्ति के सहज मानवीय गुणों का जब पतन होता है तो उस स्थिति का उन्मूलन राम का कार्य है।
गीता में भगवान ने मनुष्य मात्र को दो भागों में विभाजित कर उनके लक्षणों की विशद व्याख्या की है। आसुरी वृत्तियों वाले मनुष्यों का नियमन और दैवीय सात्विक प्रवृत्ति जनो को सहज जीवन की सुरक्षा का व्यहन करना राम का कार्य है। श्रीराम के इसी कार्य को हनुमान जी निरंतर बिना विश्राम किये कर रहे हैं।