आत्मा परमात्मा का ही अंश है। जिस प्रकार जल की धारा किसी पत्थर से टकराकर छोटे छींटों के रूप में बदल जाती हैं, उसी प्रकार परमात्मा की महान सत्ता अपने क्रीड़ा विनोद के लिए अनेक भागों में विभक्त होकर अगणित जीवों के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं। सृष्टि सञ्चालन का क्रीड़ा कौतुक करने के लिए परमात्मा ने इस संसार की रचना की। वह अकेला था। अकेला रहना उसे अच्छा न लगा, सोचा एक से बहुत हो जाऊँ । उसकी यह इच्छा ही फलवती होकर प्रकृति के रूप में परिणित हो गई । परमात्मा की एक से बहुत होने की इच्छा ने ही अपना विस्तार किया तो यह सारी वसुधा बन कर तैयार हो गई। परमात्मा ने अपने आपको बखेरने का झंझट भरा कार्य इसलिए किया कि बिखरे हुए कणों को फिर एकत्रित होते समय असाधारण आनन्द प्राप्त होता रहे। बिछुड़ने में जो कष्ट है उसकी पूर्ति मिलन के आनन्द से हो जाती है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
अगर किसी व्यक्ति को डाइमेंशिया (याद्दाश्त की कमजोरी) है… जिसके चलते वह अपने परिवार को भूल गया है..इसका अर्थ यह तो नहीं कि वह अब अपने उस परिवार का हिस्सा नहीं है। इसी तरह पिछले जमों के कर्म हमेशा आपके अस्तित्व का हिस्सा रहते हैं… जिस तरह आप बैंक में पैसे जमा करने या निकालने के बाद या निकालकर भूल जाते हैं… लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बैंक डिटेल्स में आपके लेन-देन की जानकारी नहीं रहती। जन्मों की परिभाषा भी ऐसी ही है… हम जन्म लेते हैं.. कर्म करते हैं और अगले जन्म में उन पिछले कर्मों को भूल जाते हैं… लेकिन हमारे वही कर्म हमारी आत्मा का हिस्सा होते हैं।
जिस तरह कम्प्यूटर की चिप में जानकारी फीड हो जाती है वैसे ही कर्मों की किताब में आपके कर्म जुड़ते जा रहे हैं… अगर आप अपने नजरअंदाज करने की आदत की वजह से उस चिप का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसा नहीं है कि उसमें दी गई जानकारी समाप्त हो चुकी है। ऐसे ही अगर आपको अपने कर्म याद नहीं तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपने पूर्व जन्मों के कर्मों से मुक्त है।
कर्म का सिद्धांत यही कहता है कि आको अपने अच्छे-बुरे सभी कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ता है… या तो इस जन्ममें या फिर आने वाले जन्मों में।
इसलिए अपने पिछले जन्म के कर्मों के परिणाम भुगतने के लिए व्यक्ति को हमेशा तैयार रहना चाहिए… कर्मों के चक्कर में ईश्वर का कोई लेना देना नहीं… हम जैसा करते हैं वैसा भोगते हैं और यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक कि हम अपने पिछले सभी जन्मों के परिणाम भुगत नहीं लेते।
सही कहा, ‘जैसी करनी , वैसी भरनी। कर्मो का बहुत महत्व है जीवन में।