सुप्रभातम्: जब भगवान श्रीकृष्ण पर लगा चोरी का आरोप, जानें क्या थी वजह

महाभारत की कथा के भगवान श्रीकृष्ण मुख्य पात्र हैं। लेकिन एक बार भगवान श्रीकृष्ण पर भी चोरी जैसा गंभीर आरोप लग गया। इससे भगवान् सीख दे रहे हैं कि झूठे आरोप का सामना बुद्धिमानी और धैर्य के साथ करें, जल्दबाजी करेंगे तो बात और ज्यादा बिगड़ सकती हैै। इस आरोप के लगने की पीछे क्या थी वजह आइए जानते हैं।


हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

महाभारत की कथा है। उस समय द्वारका में सत्राजित नाम का व्यक्ति था, वह सूर्य भक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उसे स्यमंतक नाम की चमत्कारी मणि दी थी। इस मणि की खास बात ये थी कि ये हर रोज बीस तोला सोना देती थी। मणि की वजह से सत्राजित बहुत धनवान हो गया था।

एक दिन श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा कि आप ये मणि राजकोष में दे देंगे तो राज व्यवस्था के लिए हमें भी थोड़ा धन मिल जाएगा।

श्रीकृष्ण की बात सुनकर सत्राजित ने मणि देने से मना कर दिया। सत्राजित की ना सुनकर श्रीकृष्ण वहां से अपने महल लौट आए।

सत्राजित का एक भाई था प्रसेनजित। प्रसेनजित ने अपने भाई को बिना बताए उसकी स्यमंतक मणि ले ली। मणि लेकर वह जंगल में शिकार खेलने चला गया। जंगल में एक शेर ने प्रसेनजित को मार दिया और खा गया। प्रसेनजित के पास से स्यमंतक मणि वही गिर गई।

इधर सत्राजित को अपना भाई और मणि दिखाई नहीं दी तो उसने पूरी द्वारका में ये खबर फैला दी कि कृष्ण ने मेरी मणि चुराई है और मेरे भाई प्रसेनजित की हत्या कर दी है।

सत्राजित की वजह से द्वारका में श्रीकृष्ण की बदनामी होने लगी। उन्हें सभी लोग चोर और हत्यारा समझने लगे। जबकि ये सभी आरोप झूठे थे। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि इस कलंक को मिटाना होगा। ऐसा विचार करके वे मणि की खोज में जंगल की ओर चल दिए।

जंगल में श्रीकृष्ण को शेर के पंजों के निशान दिखाई दिए। वहां कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद उन्हें हड्डियों का ढेर भी दिखा। श्रीकृष्ण समझ गए कि प्रसेनजित को शेर ने मार दिया है और खा गया है और उसके पास मणि यहीं कहीं गिर गई होगी।

श्रीकृष्ण मणि खोजने लगे। वहीं पास में एक गुफा के बाहर कुछ बच्चे मणि से खेल रहे थे, श्रीकृष्ण ने मणि देख ली। उस गुफा में जामवंत रहते थे। श्रीकृष्ण गुफा में पहुंचे। गुफा में श्रीकृष्ण और जामवंत का युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीकृष्ण जीते तो जामवंत ने अपनी पुत्री जामवती की विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया और स्यमंतक मणि भी दे दी। श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित को दे दी।

सत्राजित को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ और उसने क्षमा मांगी।

श्रीकृष्ण की सीख

श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि सत्राजित, मैं कलंक लेकर जीना नहीं चाहता। जीवन में जब किसी को ऐसे काम का कलंक मिले जो उसने नहीं किया है तो बहुत दुख होता है। ऐसी स्थिति में निराश हो जाओ या आक्रामक हो जाओ, इन दो रास्तों के अलावा एक और रास्ता है उस गलत आरोप की जड़ में जाओ और वहां से खुद को निर्दोष साबित करो। इसमें धैर्य और बुद्धिमानी काम आती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *