श्राद्ध विशेष : श्रीराम की जगह सीताजी ने क्यों किया पिण्डदान?

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

‘श्राद्ध का समय आ गया है’–ऐसा जानकर पितरों को प्रसन्नता होती है। श्राद्धकाल में यमराज पितरों को यमलोक से मृत्युलोक जाने के लिए मुक्त कर देते हैं। वायुरूप में वे पितृगण मन के समान तीव्र गति से श्राद्ध में आ पहुंचते हैं और श्राद्ध से पहले जिन ब्राह्मणों को निमन्त्रित किया जाता है, पितृगण उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर वहां भोजन करते हैं और भोजन से तृप्त होकर पुन: अपने लोक वापिस चले जाते हैं।

पितरगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता वे वहीं पर भूख-प्यास से व्याकुल होकर खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने पर वे निराश होकर दु:खित मन से अपने वंशजों की निन्दा करते लम्बी सांस खींचते हुए अपने लोक को चले जाते हैं।

श्राद्ध में भोजन करते हुए पितरों को क्या किसी ने देखा है?

श्राद्ध में पितर भोजन करते हैं–इसके दो श्रेष्ठ उदाहरण पद्मपुराण और वाल्मीकीय रामायण में सीताजी और राजा दशरथ के मिलते हैं। पुष्करतीर्थ में सीताजी ने राजा दशरथ सहित तीन पितरों को श्राद्ध में निमन्त्रित ब्राह्मणों के शरीर में प्रविष्ट होकर भोजन करते हुए देखा था। गया तीर्थ में सीताजी ने स्वयं राजा दशरथ को पिण्डदान दिया था।

पद्मपुराण की कथा के अनुसार वनवासकाल में श्रीराम अपने प्रियजनों से मिलने के लिए तड़प रहे थे। अत्रि ऋषि ने उन्हें बताया कि पुष्कर में अवियोगा नाम की एक वापी (बाबली) है। उस वापी का यह प्रभाव है कि परलोक में स्थित प्रियजन से मिलन हो जाता है।

श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने पुष्कर पहुंचकर मार्कण्डेय, भरद्वाज व लोमश ऋषियों को निमन्त्रित कर श्राद्ध करना शुरु किया कि एक विचित्र घटना घटी। श्रीराम ने ज्योंही पिता, पितामह, प्रपितामह का ध्यान किया, तभी उनके पिता, दादा-परदादा सहित वहां उपस्थित हो गए। तीनों ही ब्राह्मणों के शरीर से सटकर बैठ गए। यह देखकर सीताजी वहां से हट गईं। श्रीराम को आश्चर्य हो रहा था कि सीताजी श्राद्धकर्म से हट क्यों गयीं? भोजन के बाद ब्राह्मणों के चले जाने पर श्रीराम ने सीताजी से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया कि–’पिताजी को देखकर मैं इसलिए हट गयी कि मेरा वल्कल वस्त्र देखकर उन्हें बहुत दु:ख होगा। मैंने सोचा कि जिस अन्न को हमारे सेवक भी ग्रहण नहीं करते थे, उसे मैं किन हाथों से उनके सामने रखूं। साथ ही पितृगणों को मेरी वनवास की स्थिति देखकर दु:ख होगा, इसलिए मैं सामने से हट गयी।’

वाल्मीकीय रामायण में कथा है कि श्रीराम लक्ष्मण और सीता के साथ गयातीर्थ में राजा दशरथ के लिए पिण्डदान तथा श्राद्ध करने के लिए गए। श्राद्ध का सामान जुटाने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण एक माणिक्य की अंगूठी बेचने बाजार चले गए। उस समय अकेली सीताजी फल्गु नदी की बालू से खेलने लगीं।

उसी समय राजा दशरथ वहां प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित हो गए। राजा दशरथ ने सीताजी से कहा–‘मैं भूख से अत्यन्त व्याकुल हूँ। तुम मेरी पुत्रवधू हो और मैं तुम्हारा ससुर हूँ। पिण्ड अर्पणकर मेरी क्षुधा शान्त करो।’

इस पर सीताजी ने कहा–’श्रीराम की अनुपस्थिति में किस वस्तु से मैं आपको पिण्डदान करूं।’

राजा दशरथ ने कहा–’राम के समान तुम भी पिण्डदान की अधिकारिणी हो। मन में किसी भी प्रकार का संशय न रखकर इस फल्गु नदी, तुलसी आदि किसी को भी साक्षी बनाकर पिण्डदान करो।’

सीताजी ने श्रीराम की प्रिय तुलसी, फल्गुनदी, वटवृक्ष, गाय और ब्राह्मण को साक्षी बनाकर राजा दशरथ को पिण्डदान देकर संतुष्ट किया। थोड़ी देर बाद श्रीराम और लक्ष्मण श्राद्ध की सामग्री लेकर वहां आए। सीताजी ने श्रीराम को सारी बातें बताई और कहा कि राजा दशरथ बालुका पिण्ड ग्रहणकर परम तृप्ति को प्राप्त करके स्वर्गलोक चले गए हैं। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है? इसके लिए श्रीराम ने सीता से प्रमाण मांगा।

तब सीताजी ने कहा कि यह फल्गुनदी, तुलसी, गाय, ब्राह्मण और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। श्रीराम ने पांचों गवाहों से पूछा–’क्या यह बात सत्य है?’ परन्तु श्रीराम के क्रोध से डरकर फल्गुनदी, तुलसी, गाय और ब्राह्मण सीताजी द्वारा दिए गए पिण्डदान की बात से मुकर गए; सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीताजी ने राजा दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।

दशरथजी ने सीताजी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि सही वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। यह सुनकर श्रीराम विस्मित हो गए। पांचों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीताजी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दे दिया।

▪️फल्गुनदी सिर्फ नाम की नदी रहेगी, इसमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गुनदी आज भी गया में सूखी रहती है।

▪️सीताकुण्ड पर दिया जाता है बालू का पिण्डदान–फल्गुनदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।

▪️गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी।

▪️तुलसी को गया में न उगने का श्राप दिया।

▪️ब्राह्मण से कहा कि तुम कभी संतुष्ट नहीं हो पाओगे। वस्तुओं को और अधिक पाने की लालसा तुममें लगी रहेगी।

वटवृक्ष को सीताजी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तुम्हारा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यह वटवृक्ष गया में ‘अक्षयवट’ के नाम से जाना जाता है।

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