योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और इसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात प्राचीनतम धर्मों या आस्थाओं (faiths) के जन्म लेने से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव जी को “आदि योगी” तथा “आदि गुरू” माना जाता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
शिव जी और पार्वती जी के बीच वार्तालाप चल रहा था। पार्वती जी जीवन से जुड़े प्रश्न पूछ रही थीं और शिव जी उत्तर दे रहे थे। यही बातचीत तंत्र सूत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस बातचीत के आधार पर ऋषि पतंजलि ने योग की भूमिका तैयार की थी।
एक प्रश्न पार्वती जी ने ये पूछा था, ‘जब इंसान की मृत्यु आती है तो ऐसे कौन से लक्षण होते हैं कि इंसान जान सके कि उसकी मृत्यु होने वाली है।’
शिव जी देवी को कुछ लक्षण बता रहे थे तब बीच में देवी पार्वती ने पूछा, ‘काल पर विजय कौन प्राप्त कर सकता है? आपने तो एक बार काल को भी जला दिया था। फिर उसने आपकी स्तुति की तो आप उससे संतुष्ट हुए और आपने काल को फिर से उसकी प्रकृति दे दी, वह स्वस्थ हो गया। आपने काल को आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जगह विचरण करोगे, लेकिन लोग तुम्हें देख नहीं सकेंगे। मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि आपके अलावा क्या कोई काल को जीत सकता है?’
शिव जी ने कहा, ‘देवता, दैत्य, यक्ष, राक्षस, नाग और इंसान, कोई भी काल का नाश नहीं कर सकता। लेकिन ध्यान परायण योगी काल को जीत सकता है। जो व्यक्ति शरीर, मन और आत्मा के अंतर को जानता है, जो व्यक्ति हर रोज योग करता है, जो योग के माध्यम से आत्मा को स्पर्श कर चुका हो, ऐसा योगी काल पर विजय प्राप्त कर सकता है?’
देवी पार्वती ने पूछा, ‘ऐसा कैसे कर सकते हैं?’
शिव जी ने कहा, ‘प्राणायम द्वारा योग अभ्यास करो। कोई न कोई मंत्र जीवन में उतारो। इस ब्रह्म शब्द का साक्षात्कार करोगे तो काल पर विजय मिल सकती है।’
सीख
इस किस्से से हमें संदेश मिलता है कि हम भले ही कितने भी व्यस्त हैं, लेकिन हमें रोज योग जरूर करना चाहिए। जब हम रोज योग और ध्यान करेंगे तो शरीर से ऊपर उठकर आत्मा को समझ सकेंगे। आत्मा को समझने का अर्थ मृत्यु को जीतना नहीं है, जितना भी जीवन बीते, अच्छे से बीते और मृत्यु के संबंध में हमारे विचार सकारात्मक रहें।