काका हरिओम्
नई दिल्ली
भारत के एक महान् सन्त और वेदान्ती स्वामी स्वामी रामतीर्थ जी महाराज का 115वां निर्वाण दिवस आज 17 अक्टूबर को स्वामी रामतीर्थ नगर, दिल्ली स्थित स्वामी रामतीर्थ मिशन के सत्संग भवन में, रामप्रेमियों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ.
इसकी अध्यक्षता की दिल्ली मिशन की प्रधाना श्रीमती सुनीता जी मलहोत्रा ने.
इस अवसर पर स्वामी जी के महानिर्वाण से संबंधित इस मान्यता पर विस्तार से चर्चा हुई, जिसके अनुसार कुछ विचारक इस घटना को स्वाभाविक नहीं मानते. उनका कहना है कि जीवन से मिली निराशा के फलस्वरूप स्वामी जी ने जानबूझकर अपने शरीर को मां गंगा की धारा में प्रवाहित कर दिया था. अर्थात् उन्होंने जैसा सोचा था, वह उन्हें वैसा नहीं मिला.
लेकिन सरदार पूरण सिंह ने, जो 15 अगस्त 1906 में उन्हें मिले थे, अपने एक लेख में इस बात का उल्लेख किया है कि स्वामी जी को यह शरीर बंधन लगने लगा था. अब वह खुले आकाश में उड़ना चाहते थे. वेदान्त ग्रंथों में यह विश्वानुभूति की यह उच्चतम भूमिका है.
जब भिलंगना के तेज बहाव में वह बहे, तो ऐसा नहीं कि खुद को बचाने उन्होंने प्रयास नहीं किया, लेकिन जब उन्होंने महसूस किया कि मृत्यु को स्वीकार करने अलावा और कोई चारा नहीं रहा है, तो उन्होंने ॐ का पावन गान करते हुए पवित्र नदी में स्वयं को समर्पित कर दिया.
स्वामी जी कहते थे, मां गंगे! लोगों की अस्थियां मरने के बाद तेरी पवित्र गोद में डाली जाती हैं, राम अपने जीवित शरीर को तुझमें समर्पित कर देगा.
वह जानते थे भावी को. ऐसा ही हुआ.
उनका आखिरी संदेश पढें, तो पता चलता है कि वह अध्यात्म की किस चोटी पर स्थित थे.
कोटिशः नमन.