टिहरी : कुमाल्डा में वृक्षमानव का स्मृति द्वार बनकर तैयार

Uttarakhand

हिमशिखर पर्यावरण डेस्क
नई टिहरी

वृक्ष मानव नाम से मशहूर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वेश्वर दत्त सकलानी की स्मृति में कुमाल्डा में स्मृति द्वार बनकर तैयार हो गया है।

प्रकृति प्रेमी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वेश्वर दत्त सकलानी के निधन के बाद से स्थानीय ग्रामीण उनकी स्मृति में क्षेत्र में स्मृति द्वार लगाने की मांग कर रहे थे। जिस पर राज्य सरकार की ओर से कुमाल्डा में बनाए जा रहे स्मृति द्वार का कार्य आज पूरा हो गया है। बताते चलें कि पूर्व में कद्दूखाल-कुमाल्डा मोटर मार्ग का नाम भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सकलानी के नाम पर किया गया था।

कर्मयोगी वृक्षमानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी

इस धरा पर मानव कर्म करने में स्वतंत्र है। आज का मनुष्य रोजमर्रा की निजी जिंदगी में उलझा हुआ है। लेकिन बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने जीवन में स्वार्थ से रहित होकर मानव जाति के कल्याण के लिए अपना कर्म करते हैं। ऐसे देहधारी लोग ही इस संसार में मानव के रूप में जन्म लेकर महामानव बन जाते हैं। ठीक इसी तरह कर्मयोगी वृक्षमानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने भी निष्काम भाव से प्रकृति को सजाने और संवारने में अपने जीवन की आहुति दे दी। वृक्षमानव के अंतर को टटोलें तो पता चलता है कि उनका शरीर और आत्मा सदैव पेड़-पौधों में बसती थी। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक शरीर को तिल-तिल जलाकर पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाए रखी। वृक्ष मानव की तपस्या से टिहरी के पुजार गांव में खड़ा हुआ लाखों वृक्ष का प्राकृतिक आक्सीजन बैंक कोरोना संकट काल में लोगों को प्राणवायु देने का भी काम कर रहा है।

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धरती मेरी किताब, पेड़-पौधे मेरे शब्द

‘‘तीन किलो की कुदाल मेरी कलम है, धरती मेरी किताब है, पेड़-पौधे मेरे शब्द हैं, मैंने इस धरती पर हरित इतिहास लिखा है।’’ ये शब्द वृक्ष मानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी के हैं। धरती के बंजर सीने पर लाखों वृक्ष उगाने वाले वृक्ष मानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने हजारों एकड़ पर विशाल जंगल खड़ा कर दिया था। उन्होंने करीब बारह सौ हेक्टेयर में 50 लाख से अधिक पेड़ लगाए। इनमें बांज, बुरांश, काफल और देवदार के पेड़ शामिल हैं। उनके इस कार्य के लिए वर्ष 1986 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरुस्कार से भी नवाजा गया। वृक्ष मानव कहा करते थे कि ये पेड़ ही मेरे भगवान हैं, यही मेरी संतानें हैं।

वृक्षमानव का जीवन परिचय

विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को पुजार गांव में हुआ था। वृक्ष मानव को वृक्ष लगाकर प्रकृति को संवारने का कर्मभाव अपने पूर्वजों की विरासत से मिला था। यही कारण है वे आठ वर्ष की खेलने-कूदने की उम्र से ही पेड़ लगाने लगे थे। फिर क्या था, उम्र बढ़ने के साथ-साथ ही बंजर जमीन पर पेड़-पौधे लगाने की श्रृंखला भी बढ़ती चली गई। विश्वेश्वर दत्त सकलानी और उनके बड़े भाई नागेंद्र सकलानी ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कई बार वे जेल भी गए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नागेंद्र सकलानी शहीद हो गए। 1956 में उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया। इन घटनाओं ने उनका वृक्षों से और अधिक लगाव बढ़ा दिया। इसके बाद उनके जीवन का एक ही उद्देश्य बन गया, वृक्षारोपण। 18 जनवरी 2019 को वृक्षमानव इस शरीर को छोड़कर अनंत की यात्रा पर निकल गए। लेकिन उनके अविस्मरणीय कार्य सदैव पर्यावरण संरक्षण के पथ पर आगे बढ़ने का संबल प्रदान करते रहेंगे।

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पेड़ों के लिए दे दी ‘आंखों रोशनी’

वृक्ष मानव ने पेड़ों के लिए सिर्फ अपना जीवन ही नहीं दिया, अपनी आंखों की रोशनी भी दे दी। वर्ष 1999 में उन्हें आई हैमरेज हो गया। उनका उपचार हुआ। चिकित्सकों का कहना था कि शारीरिक श्रम के कारण उनकी आंखों की नसें फट गई हैं। डाक्टरों ने उनहें शारीरिक श्रम न करने की सख्त हिदायत दी। लेकिन आंखों की रोशनी गंवाने के बाद भी वृक्ष मानव ने पेड़ लगाना नहीं छोड़ा। वह फिर भी कुदाल लेकर जंगल की ओर चले जाते और बीज बोते। सच्चे कर्मयोगी होने के कारण वृक्षमानव प्रचार-प्रसार से हमेशा कोसों दूर रहे हैं।

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