11 सितंबर : स्‍वामी विवेकानंद के भाषण की वह तारीख-जब विश्व में भारतीय आध्यात्म शीर्ष पर पहुंचा

Uttarakhand

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

भारत को विश्व गुरु का पद शायद यूं ही नहीं मिला है अपितु इस महान देश के अधिकांश मनीषियों ने अपनी विद्वत्ता के कारण विश्व के अनेक लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। ‘तभी तो आज का दिन वर वश याद आ रहा है , ऐतिहासिक महत्व का दिन है आज।’ हमारी संस्कृति अनुकरणीय है यहां के मानव ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना से ओत-प्रोत हैं।

सम्भवतः कोई व्यक्ति विवेकानन्द ऐसे ही नहीं बनता बल्कि वह बनता है जो ‘नर +इन्द्र’ हो राजा नहीं अपितु जिसने अपनी इन्द्रियों को अपने बश में कर रखा है जो उनका गुलाम नहीं अपितु बादशाह है । ऐसे महामानव श्री नरेन्द्र दत्त ही आगे जाकर स्वामी विवेकानन्द जी हुए और उन्होंने भारत की युवा शक्ति को ललकारा व कहा कि ” उठो, जागो और आगे बढ़ो, देश भक्त बनो। इस संन्यासी ने विश्व में भारतीय आध्यात्म को शीर्ष पर पहुंचाया।

आज से ठीक 128 साल पहले 11 सितम्बर सन् 1893 से 24 सितम्बर सन् 1893 तक शिकागो में चली ‘धर्म सभा’ में स्वामी जी ने लगभग प्रतिदिन अपना व्याख्यान दिया और उस महासभा में अपना महत्वपूर्ण एवं मुख्य व्याख्यान 19 सितम्बर सन् 1893 को दिया। जिसमें आपने बताया कि — ” हिन्दू धर्म की आभ्यंतरिक शक्ति, वेदों की नित्यता सृष्टि की अनन्तता व अनादिता अनन्त है” इसमें आपने — “पुनर्जन्मवाद ऋषियों और आत्मा के विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।” कोलंबस हाल में चार हजार श्रोताओं के समक्ष आपने हिन्दू धर्म की महानता व उसकी प्राचीनता पर कहा तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

आपने कहा कि ” मुझको ऐसे धर्म का धर्मावलंबी होने पर गर्व है, जिस धर्म ने विश्व को सहिष्णुता एवं सभी धर्मों को स्वीकार करने की शिक्षा प्रदान की,” और यह भी कहा — कि “हम सभी धर्मों के प्रति मात्र सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते बल्कि सभी धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार (ग्रहण) करते हैं”।

अन्तिम दिन 24 सितम्बर सन् 1893 को आपका कथन था कि ” ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं हो जाना चाहिए न हिन्दू या बौद्ध को ईसाई होना चाहिए, ( धर्म परिवर्तन नहीं) अपितु हर धर्म को एक दूसरे के प्रति समभाव रखना चाहिए”। उस सभा में भारतीय धर्म गुरु भी थे पर हिन्दू धर्म के एक मात्र प्रतिनिधि स्वामी विवेकानन्द जी ही थे।इस धर्म सभा को बाद में ‘ विश्व सर्वधर्म सभा’ कहा गया था। भारत भूमि तो “स्वर्गादपि गरीयसी” है और अनादि काल से हमारा देश विश्व का मार्ग दर्शन करता रहा है।

आज भारत अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास रत है जो उसे अवश्य मिलेगी। आज ऐसे महामानव की याद आनी स्वाभाविक भी है और उन्हें याद कर प्रेरणा भी लेनी आवश्यक है। इस देश के उर्जावान नागरिकों को यह आमंत्रण भी है। तो आइए एक संकल्प लें कि अपनी ख्याति को अर्जित करने में सहयोगी बनेंगे। जय हिन्द, वन्देमातरम् , भारत माता की जय ।

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