नई दिल्ली
भारत समेत दुनिया भर में जब कोरोना का डेल्टा वैरिएंट कहर ढा रहा था तो कोविशील्ड वैक्सीन लोगों के लिए मजबूत सुरक्षा कवच बनकर उभरी। लैंसेट की स्टडी में कहा गया है कि डेल्टा वायरस जिस वक्त उफान पर था, तब कोविशील्ड वायरस के खिलाफ काफी प्रभावी पाई गई। “द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज” पत्रिका जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है। लैंसेट की यह स्टडी अप्रैल-मई के दौरान भारत में कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के विनाशकारी असर के दौरान कोविशील्ड की प्रभावशीलता आंकने के लिए किया गया था।
ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई) के नेतृत्व में भारतीय शोधकर्ताओं की एक बहु-संस्थागत टीम ने अप्रैल और मई 2021 के मध्य सार्स-कोव-2 के संक्रमण के दौरान कोविशील्ड वैक्सीन की वास्तविक-दुनिया प्रभावशीलता का आकलन किया है। इस टीम ने सुरक्षा के तंत्र को समझने के लिए टीका लगे स्वस्थ व्यक्तियों में वेरिएंट के खिलाफ निष्प्रभाविता गतिविधि और सेलुलर प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं का भी आकलन किया है।
“द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज” पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में सार्स-कोव-2 संक्रमण की पुष्टि किए गए 2379 और नियंत्रित किए गए 1981 मामलों का तुलनात्मक अध्ययन शामिल हैं। इसमें बताया गया है कि पूरी तरह टीकाकरण किए गए व्यक्तियों में सार्स-कोव-2 संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन की प्रभावशीलता 63 प्रतिशत पाई गई, जबकि मध्यम से गंभीर बीमारी के खिलाफ पूर्ण टीकाकरण में वैक्सीन की प्रभावशीलता 81 प्रतिशत पाई गई।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि डेल्टा वेरिएंट और वाइल्ड टाइप सार्स-कोव-2 दोनों के खिलाफ स्पाइक विशिष्ट टी-सेल प्रतिक्रियाओं को संरक्षित किया गया था। इस तरह की प्रतिरक्षक सुरक्षा वायरस के वेरिएंट के खिलाफ ह्यूमूरल प्रतिरक्षा कम करने और मध्यम से गंभीर बीमारी की रोकथाम और अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत को कम कर सकती है। यह अध्ययन वास्तविक दुनिया वैक्सीन प्रभावशीलता और टीकाकरण के लिए प्रतिरक्षात्मक प्रतिक्रिया के बारे में व्यापक डेटा उपलब्ध कराता है जिससे नीति के मार्गदर्शन में मदद मिलनी चाहिए।