‘मोक्षधाम में नहीं लगाते सोना!’: केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में गोल्ड परत चढ़ाए जाने का पुरोहितों ने किया विरोध

भगवान शिव ने जहां पांडवों को दर्शन देना स्वीकार न कर अंतर्ध्यान हो गए। वही ज्योतिर्लिंग केदारनाथ आज फिर से चर्चा में है। 2013 में श्मशान भूमि बनी केदार बाबा की स्थली अब स्वर्ण भूमि बनाए जाने को लेकर विवादो में है। द्वापर युग में प्रगट हुए भगवान शिव के इस पावन स्थान को क्या सोने से भव्य बनाने की आवश्यकता है या उससे मुक्त कर दिव्य स्थल ही बना रहने देने की जरूरत है।

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केदारनाथ

विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में गर्भगृह की दीवारों पर सोने की परत लगाने का तीर्थ पुरोहितों ने जमकर विरोध किया है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि जबरन मंदिर में सोना लगाया गया तो उग्र आंदोलन को मजबूर होंगे। तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि सोना चढ़ाने के नाम पर प्राचीन मंदिर की दीवारों को ग्रिल मशीनों से छेदा जा रहा है, जो धार्मिक रूप से अनुचित है। वहीं, इस मामले पर बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि केदारनाथ गर्भ गृह में सोने की परत चढ़ाने का विरोध औचित्यहीन है। मंदिर के गर्भगृह में छेड़छाड़ की बात दुष्प्रचार का हिस्सा है। गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाने के मामले में धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और पुरातत्व विशेषज्ञों की सलाह का पूरा पालन किया जा रहा है।

केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह की दीवारों, जलहरी, छत्रों को सोने की परत चढ़ाने का तीर्थपुरोहितों ने विरोध किया है। बताते चलें कि महाराष्ट्र के एक दानदाता ने बीकेटीसी से सोना चढ़ाने के लिए आग्रह किया था। जिस पर समिति ने शासन से अनुमति मांगी थी। इसके बाद शासन ने बीकेटीसी को सोना चढाने की अनुमति प्रदान की। अब मंदिर के गर्भगृह के दीवारों पर लगी चांदी की परतें निकाल दी गई हैं। बता दें कि 2017 में मंदिर के गर्भग्रह की दीवारों में चांदी लगाया गया था। अब जैसे ही गर्भग्रह की चार दीवारों, खंभों, जलहरी, छत्रों को सोने की परत चढ़ाने का काम शुरू हुआ तो तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।

तीर्थ पुरोहित समाज केदारनाथ अध्यक्ष विनोद प्रसाद शुक्ला का कहना है कि केदारनाथ मंदिर पांडवकालीन है। लेकिन अब सोने की परत लगाने से मंदिर की पौराणिक परंपराओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। कहा कि केदारनाथ मोक्षधाम है और मंदिर के गर्भगृह को स्वर्णमंडित करना परंपराओं का अपमान है। बिना हक-हकूकधारियों व तीर्थ पुरोहितों को विश्वास में लिए यह कार्य किया जा रहा है, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं है। कहा कि केदारनाथ में सोना लगाने की जरूरत ही नहीं है। क्योंकि ये ऐश्वर्य का नहीं बल्कि मोक्ष का स्थान है।

केदारनाथ धाम के तीर्थपुरोहित आचार्य संतोष त्रिवेदी के अनुसार मंदिर के भीतर चार स्तंभ विराजमान हैं, उनमें भगवान का वास है। उनकी तीर्थ पुरोहित समाज की ओर से पूजा की जाती है। कहा कि आज ड्रिलिंग मशीन से गर्भगृह में छेद किए जा रहे हैं। केदारनाथ मोक्षधाम है और मोक्षधाम में सोना नहीं लगता है। क्योंकि सोने में कलयुग का वास है। भगवान के गर्भगृह में सोना लगाने का मतलब है कि कलयुग को गर्भगृह में बिठाना। कहा कि गर्भग्रह में जबरन सोना नहीं लगाने दिया जाएगा।

डा. प्रभाकर जोशी का कहना है कि भगवान केदार की महत्ता सोने से बहुत उपर है। सांसारिक की कोई भी वस्तु भगवान की महत्ता नहीं बढ़ा सकती। सोने की परत चढ़ने से भगवान केदारनाथ सामान्य सुरक्षा में नहीं रह पाएंगे। इसके लिए विशेष सुरक्षा बल यहां कपाट बंदी के बाद भी जरूरी होगा। सोने का रासायनिक प्रभाव मंदिर के गर्भ गृह पर क्या होगा। इसका भी परीक्षण आवश्यक होगा। सांसारिक मोह माया की मुक्ति की प्रार्थना लेकर केदार बाबा की शरण में आने वाले श्रद्धालु सोने की चमक दमक से और मोह माया में बंधकर लोभ लालच से घिरेंगे या मुक्त होंगे यह भी प्रश्न बना रहेगा। भगवान शिव सभी कुछ स्वीकार करने वाले महादेव हैं । एसे में सोने से उन्हें तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा मगर उनके भक्त, निवास स्थल अवश्य ही प्रभावित हो सकता है। इस पर चिंतन किया जाना चाहिए।

इधर, इस मामले पर बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा कि महाराष्ट्र के एक शिवभक्त के प्रस्ताव पर बीकेटीसी ने केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की प्लेटें लगाने की अनुमति प्रदेश सरकार से प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में गर्भगृह में चारों दीवारों पर चांदी की प्लेटें लगी थीं। शासन से अनुमति मिलने के पश्चात गर्भगृह में लगीं चांदी की प्लेटें उतार दी गईं। गर्भगृह का आवश्यक माप इत्यादि लेकर उस अनुरूप सोने की प्लेटें तैयार कर लगाई जाएंगी। उन्होंने बताया कि चूंकि गर्भगृह में पूर्व में चांदी की प्लेटें लगी थीं। लिहाजा, सोने की प्लेटें लगाने के लिए गर्भगृह में नाममात्र के लिए ही अतिरिक्त कार्य की आवश्यकता होगी।

उन्होंने केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की प्लेटें चढ़ाए जाने मामले में कुछ लोगों के विरोध को औचित्यहीन बताया और कहा कि ऐसा करने से किसी भी प्रकार की परंपराओं अथवा धार्मिक मान्यताओं से छेड़छाड़ नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि प्राचीन काल से ही हिंदू मंदिर वैभवता के प्रतीक रहे हैं। स्वर्ण व रत्नजड़ित आभूषणों से देवी – देवताओं का श्रृंगार किया जाता था। मंदिरों के गर्भगृह व स्तंभ मूल्यवान धातुओं व रत्नों से सजाए जाते थे। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में मुगल शासकों द्वारा कई बार लूटपाट मचाए जाने का इतिहास में वर्णन मिलता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी सोमनाथ व काशी विश्वनाथ समेत अनेक बड़े शिवालयों के गर्भगृह से लेकर बाहरी आवरण तक को सोने से सजाया गया है। उन्होंने कहा कि जो लोग केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाए जाने का विरोध कर रहे हैं, वो सोशल मीडिया पर शास्त्रों का हवाला देकर कई भ्रामक तथ्य फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि समय के साथ धार्मिक स्थलों में आवश्यक परिवर्तन स्वाभाविक हैं।

अजेंद्र ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि दशकों पहले तक श्री केदारनाथ मंदिर की छत घास- फूस (स्थानीय भाषा में खाड़ू) से बनायी जाती थी। श्री केदारनाथ मंदिर की छत के लिए खाड़ू घास उगाने के लिए कुछ खेत नियत थे। स्थानीय भाषा में उन ढालनुमा खेतों को “खड़वान” कहते हैं। उसके बाद समय बदला तो घास के स्थान पर पत्थर के पठाल लगायी गयी। उसके बाद टिन की छत तथा वर्तमान में तांबे के पतरों (शीट) की छत है।

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