चंबा (टिहरी)।
पृथ्वी दिवस के अवसर पर वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी में डा0 अरविन्द बिजल्वाण एवं सहयोगी वैज्ञानिकों द्वारा लिखित पुस्तिका ‘एग्रो-फारेस्ट्री (कृषि-वानिकी)’ का विश्वविद्यालय के कुलपति कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने विमोचन किया।
पृथ्वी दिवस के वी0 च0 सिं0 ग0 उत्तराखण्ड़ औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार के कुलपति प्रो0 अजीत कुमार कर्नाटक द्वारा वानिकी महाविद्यालय रानीचैरी के वैज्ञानिकों द्वारा लिखित किसानोपयोगी पुस्तिका ’एग्रो-फारेस्ट्री (कृषि-वानिकी)’ का दिनांक 22/04/2022 को विधिवत विमोचन वानिकी महाविद्यालय रानीचैरी, टिहरी गढवाल के वानिकी सभागार में किया गया।
’एग्रो-फारेस्ट्री (कृषि-वानिकी)’ नामक शीर्षक इस पुस्तिका को वानिकी महाविद्यालय रानीचैरी के कृषि-वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 अरविन्द बिजल्वाण, कल्पना बहुगुणा, डा0 अमोल वशिष्ठ, डा0 चतर सिंह धनाई, डा. रीना जोशी, गौरव कोठारी एवं देवेन्द्र सिंह द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तिका किसानों, छात्रों, तथा कृषि एवं वानिकी के क्षेत्र में कार्य करनें वालों की उपयोगिता के अनुसार लिखी गयी है। साथ ही डा0 अरविन्द बिजल्वाण एवं उनके सहयोगियों द्वारा विभिन्न विषयों जैसे बांज एक बहुपयोगी वृक्ष, औषधीय मशरूम गैनोडर्मा, जिरेनियम की खेती आदि पर लिखी विवरणिकाओं का भी कुलपति प्रो0 अजीत कुमार कर्नाटक द्वारा विधिवत विमोचन किया गया।
पुस्तिका के विमोचन के अवसर पर भरसार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 अजीत कुमार कर्नाटक नें कहा कि कृषि-वानिकी एक महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसमें एक ही भूमि से किसानों को फसल, लकड़ी, चारा, फल, रेशा, सब्जी आदि प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि कृषि-वानिकी किसानों की आजिविका एवं आय सृजन करनें की एक कारगर विधा है एवं पर्यावरण संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रो0 कर्नाटक नें कहा कि वैज्ञानिक तरीके से कृषि-वानिकी अपनाकर किसान भाई अधिक लाभ के साथ-साथ सतत, टिकाऊ एवं पर्यावरणरक्षी खेती कर सकते है। इस अवसर पर वानिकी महाविद्यालय रानीचैरी के संकाय सदस्य एवं वैज्ञानिक डाॅ0 एसी0पी0 सती, डा0 अरविन्द बिजल्वाण, डाॅ0 अमोल वशिष्ठ, डाॅ0 चतर सिंह धनाई, डाॅ0 लक्ष्मी रावत, डा0 अजय यादव, डाॅ0 इन्दु बिष्ट, डाॅ0 अरूणिमा पालीवाल, डाॅ0 रीना जोशी, डाॅ0 शिखा, डाॅ0 आलोक येवाले, डाॅ0 दीपा रावत, डाॅ0 आर0एस0 बाली, डाॅ0 योगेश कुमार, श्री इन्द्र सिंह, श्री पंकज लाल, डाॅ0 समित चैधरी, श्री प्रकाश नेगी, श्री अर्पण राव, डाॅ0 मनोज कुमार, डाॅ0 बी0एस0 बुटोला, डाॅ0 अजय पालीवाल, डाॅ0 तौफिक अहमद, डाॅ0 पंकज कुमार, कलप्ना बहुगुणा, नवीन तड़ियाल, शुभाश्री साहू, अनीता पंवार, अकिंता डोभाल, अर्शी जेवा, शुष्मिता रांगड, दीक्षा सेमवाल आदि उपस्थित थे।
क्या है ’कृषि-वानिकी’
पुस्तक के मुख्य लेखक डा0 अरविन्द बिजल्वाण ने बताया कि कृषि-वानिकी एक ऐसी विधा है जिसमें फसलों के साथ-साथ खेतों में बहुवर्षीय वृक्षों को लगाया जाता है, अर्थात फसलों के साथ वृक्षों को लगाने की विधा को कृषि-वानिकी कहते है। डा0 बिजल्वाण नें कहा कि कृषि-वानिकी एक परम्परागकत पद्यति रही है एवं वर्तमान समय में इसके प्रवन्धन पर जोर दिया जा रहा है। समय के अनुसार खाद्य एवं लकड़ी की बढ़ती मांग के फलस्वरूप कृषि-वानिकी का अत्यन्त महत्व है एवं इसी महत्ता को मध्यनजर रखते हुये भारत वर्ष 2014 में राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति प्रारम्भ करने वाला विश्व का प्रथम देश बना। यह बात जगजाहिर है कि बढ़ती जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति कराना एक कठिन चुनौती है, किन्तु इससे भी अधिक चुनौती बढ़ती जनसंख्या हेतु लकड़ी उपलब्ध कराना है, क्योंकि विगत कुछ वर्षो में जंगलों से लकड़ी की उपलब्धता काफी कम हो गयी है। अतः इस प्रकार वस्तु स्थिति को समझते हुये इस दिशा में कृषि-वानिकी एक ऐसा विकल्प है जिसमें हम फसलों के साथ उचित तालमेंल वालेे पेड़ों को खेतो में लगाकर भूमि का समुचित व सतत प्रबन्धन कर सकते है। साथ ही वनों पर आधारित निर्भरता को भी कम किया जा सकता है। अर्थात लकड़ी की मांग में हो रही वृद्धि को कृषि-वानिकी में उगाये जा रहे पेड़ों से प्राप्त लकड़ी से पूरा किया जा सकता हैै साथ ही इससे वनों पर बढ़ रहे दबाव को भी कम किया जा रहा है। हिमालय क्षेत्रों में कृषि-वानिकी प्रणाली एक महत्वपूर्ण एवं बहुआयामी अवयव है क्योंकि कृषि-वानिकी से विपरीत मौसम जैसे भारी वर्षा, तूफान, ठंड़, अत्यधिक धूप, बर्फबारी, ओलावृष्टि आदि के प्रभाव से कृषि फसलों की रक्षा वृक्ष करतें है। अत्यधिक गर्मी एवं ठंड़ में जब हरे चारे की कमी होती है तब वृक्ष से पशुओं को हरा चारा भी उपलब्ध होता है।