एक दौर में अपने प्रवचनों से दुनिया को हिला देने वाले महान विचारक तथा भारतीय आध्यात्मिक गुरु ओशो को कौन नहीं जानता। भारतीय धर्मगुरु ओशो का दावा था कि उनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया बदल कर रख देंगी। ओशो ने हजारों प्रवचन दिए और हर विषय को छुआ। इस लेख में ओशो का मां और पिता पर दिया प्रवचन पढ़िए-
श्रीकृष्ण कहते हैं, मैं स्त्रियों में स्मृति हूं। समग्रता की, इंटिग्रेटेड, पूरी, पूर्ण। स्त्री याद करती है, बुद्धि से नहीं, विचार से नहीं, अपने पूरे होने से, टोटल बीइंग।
इसलिए एक पिता है और एक मां है। पिता एक बिल्कुल औपचारिक संस्था मालूम होती है। न भी हो, चल सकता हैं पशुओं में नहीं भी होती है, तो भी चलता हैं लेकिन मां एक औपचारिक संस्था नहीं है। मां और बेटे का संबंध एक स्मृति मात्र नहीं है बुद्धि की, एक सारे अस्तित्व का लेन-देन है। मां के लिए उसका बेटा, उसका ही टुकड़ा है, उसका ही फैला हुआ हाथ है।
अगर एक बेटे की हत्या कर दी जाए और मां को पता भी न हो, तो भी मां के प्राण आंदोलित हो जाते हैं। अब तो इस पर बड़े वैज्ञानिक परीक्षण हुए हैं। एक सैनिक मरता है युद्ध में और उसकी मां बेचैन हो जाती है हजारों मील दूर। पिता पर कोई असर नहीं पड़ता। पिता का अस्तित्वगत संबंध नहीं है। मेरा बेटा है, यह एक बौद्धिक स्मृति है। और कल अगर एक चिट्ठी मिल जाए, जिससे पता चले कि नहीं, किसी और का बेटा है, तो पिता का सारा संबंध टूट जाएगा, विलीन हो जाएगा। वह संबंध गणित का है, हिसाब का है। बहुत गहरा और आंतरिक नहीं है।
इसलिए कोई पुरुष अगर पिता न भी बने, तो कोई भेद नहीं पड़ता। कोई भेद नहीं पड़ता व्यक्तित्व में कोई कमी नहीं आती। इसलिए पुरुष की उत्सुकता पिता बनने की कम और पति बनने की ज्यादा होती है। स्त्री की उत्सुकता भी अगर पत्नी बनने की हो, तो उसे स्त्री होने का रहस्य पता नहीं है।
स्त्री की उत्सुकता मौलिक रूप से मां बनने की है। अगर वह पति को भी स्वीकार करती है, तो मां बनने के मार्ग पर। और अगर कोई पुरुष पिता बनना भी स्वीकार करता है, तो पति की मजबूरी में। कोई उत्सुकता पुरुष को पिता बनने की वैसी नहीं है। और अगर कभी रही भी है, तो उसके कारण अवांतर रहे हैं। जैसे धन है, संपत्ति है, जायदाद किसी की होगी। क्या नहीं होगा। बेटा चाहिए, तो यह सब सम्हालेगा। या क्रियाकांड और धर्म के कारण, कि अगर पिता मर जाएगा और बेटा नहीं होगा, तो अंतिम क्रिया कौन करेगा? और फिर पानी कौन चढ़ाएगा? लेकिन ये सब गणित के संबंध हैं। इन सब में हिसाब है। ये परपजिव हैं।
अगर बेटा मरता हो, तो मां का हृदय पीड़ित हो जाता है, दुखी हो जाता है, चिंचित हो जाता है।और मनुष्यों में ही नहीं, अभी पशुओं पर भी प्रयोग किए हैं रूस में उन्होंने।
खरगोश को काटते हैं और उसकी मां मीलों दूर है और उसके हृदय में असर पड़ते हैं। उसकी हृदय-गति बढ़ जाती है। वह कंपने लगती है। उसकी आंख में आंसू आ जाते हैं। यंत्रों से अब तो इसकी परीक्षा हो चुकी है कि पशुओं की मां भी किसी अज्ञात मार्ग से प्रभावित होती है। कोई इतनी गहरी स्मृति है, जिसको हम बायोलाजिकल कहें, साइकोलाजिकल नहीं, जिसको हम मानसिक न कहें, बल्कि कहें कि जैविक, उसके रोएं-रोएं में भरी हुई है।