सुप्रभातम्: महात्मा जी ने तोते को रटाया मंत्र-पिंजड़ा छोड़कर ऊचें उड़ना है

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

ससांर की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हर एक संसारी को प्रत्येक मनुष्य को पता है, क्या सही है और क्या गलत है।

फिर भी वे धर्म के रास्ते को छोड़कर अधर्म को अपनाते हैं और जान के अपने जीवन को अंधकार में डालते हैं। इसी विषय पर मैं आपको एक सुंदर घटना बताने जा रहा हूं– मैं आशा करता हूं कीआप सभी को बहुत पसंद आएगी।

……..एक संत अपने कुछ शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे एक स्थान पर उन्होंने देखा की पिजरें के अन्दर तोता है और पिंजरा खुला हुआ है। तोता है कि उड़ नहीं रहा, महात्मा जी के शिष्यों ने कहा कि गुरू जी ये तो बडी आश्चर्य की बात है पिजंरा का द्वार खुला है फिर भी है कि तोता उड़ नहीं रहा-आजाद नहीं होना चाह रहा इस जेल से। महात्मा जी ने कहा कि इसे ज्ञान नहीं है अभी वे उस तोते को पिंजरे के सहित अपने आश्रम ले आए मंत्र पढ़ाने लगे- पिंजड़ा छोड़कर ऊचें उड़ना है। कुछ ही दिनों में वह समझदार तोता मंत्र को रट लिया।

वह तोता भी जोर जोर से पढ़ने लगा- पिंजड़ा छोड़कर ऊचें उड़ना है। महात्मा जी ने समझा कि अब इसे मंत्र याद हो गया है,अब इसके पिंजड़े के द्वार खोल दिया जाए इसको ज्ञान हो गया है और अब यह उड़ जाएगा। महात्मा जी ने पिंजरे का द्वार खोला, सारे शिष्य गण वहीं खड़े हुए थे और यह सब दृश्य देख रहे थे। महात्मा जी पिंजड़े के द्वार को खोल दिया लेकिन तोता पिंजरे से बाहर आना ही नहीं चाह रहा और बार-बार महात्मा जी का रटाया हुआ मंत्र पढ़ रहा था- पिंजड़ा छोड़कर ऊचें उड़ना है।

महात्मा जी के शिष्य यह दृश्य देखकर और आश्चर्य में पड़ गए कहा गुरु जी इसे पता है फिर भी यह उड क्यों नहीं रहा। महात्मा जी भजनानंदी थे, अध्यात्मवादी थे उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया कि बेटा यही हाल सभी मनुष्यों का है। पता है कि भगवान का भजन करना चाहिए उसी से कल्याण होना है -यह मंत्र उनको भी पता है। लेकिन उस पर अमल कभी नहीं करते प्रपंन्च मे पड़े रहते हैं और अपने आपको दुख रूपी पिंजरे में कैद रखते हैं। अपने आपको दुख रूपी पिंजरे में कैद रखते हैं।

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