आज कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली, जानें स्नान व दान का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा सनातन धर्म का एक पवित्र त्योहार है जिसे देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है, जिससे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता इस। साथ ही, इस दिन को गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

आज कार्तिक मास की पूर्णिमा है। इस पर्व को त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहते हैं। माना जाता है कि इस तिथि पर भगवान शिव ने तारकासुर के तीन पुत्रों का वध किया था। इन तीन असुरों को ही त्रिपुरासुर कहते हैं। इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं।

पौराणिक कथा है कि कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध कर दिया था, इसके बाद तारकासुर के तीन पुत्र तरकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।

तारकासुर के तीनों पुत्रों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनके सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। इन तीनों असुरों ने अमरता का वरदान मांगा तो ये वर देने के लिए ब्रह्मा जी ने मना कर दिया। इसके बाद तीनों ने असुरों ने बहुत सोच-समझ वर मांगा कि ब्रह्मदेव आप हमारे लिए तीन पुरियों (नगर) की रचना करें और जब युगों में एक बार ये तीनों पुरियां एक सीधी रेखा में आएंगी, तब कोई इन तीनों पुरियों को एक बाण से एक साथ खत्म करे, तब ही हमारी मृत्यु हो।

ब्रहमा जी ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को ऐसा ही वर दे दिया। इस वर के बाद इन तीनों असुरों का नाम त्रिपुरासुर हो गया। तीनों असुरों ने तीनों लोकों में आतंक मजा दिया, कोई भी देवता इन्हें पराजित नहीं कर पा रहा था। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव सृष्टि की रक्षा के लिए त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया।

जब त्रिपुरासुर की तीनों पुरियां यानी नगर एक सीधी रेखा में आए, तब भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों पुरियों को नष्ट कर दिया, इसके बाद त्रिपुरासुर यानी तारकासुर के तीनों पुत्रों का वध हो गया। त्रिपुरासुर का वध करने की वजह से ही शिव जी को त्रिपुरारी भी कहा जाता है।

अब जानिए कार्तिक पूर्णिमा पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…

• भगवान शिव ने हिन्दी पंचांग के आठवें महीने का नाम कार्तिकेय स्वामी के नाम पर कार्तिक रखा था, क्योंकि इसी महीने में कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध किया था।

इस पर्व पर कार्तिकेय स्वामी की विशेष पूजा करनी चाहिए। गणेश पूजन के बाद कार्तिकेय स्वामी का जल-दूध से अभिषेक करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। ऊँ श्री स्कंदाय नमः मंत्र का जप करें। स्कंद कार्तिकेय स्वामी का ही एक नाम है।

• कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने तारकासुर के तीन पुत्रों का वध करके सृष्टि की रक्षा की थी, इस कारण ये भगवान शिव की पूजा का पर्व है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध और पंचामृत चढ़ाना चाहिए। बिल्व पत्र, हार-फूल, धतूरा, आंकड़े के फूलों से शिवलिंग का श्रृंगार करें। शिवलिंग पर चंदन का लेप करें। ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप करें। भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।

आज के जपादि का फल दस यज्ञों के समान मिलता है। पद्म पुराण में वर्णित है कि –

वरा्न् दत्वा यतो विष्णु र्मत्स्यरूपोऽभवत् तत:।
तस्यां दत्तं हुतं जप्तंदशयज्ञफलं स्मृतम् ।।

आज का दिन हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हम अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने के लिए अपने हितार्थ अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता महसूस करते हैं जिससे यह दीप महोत्सव हमारे जीवन और समाज के जीवन के अन्धकार और अज्ञान की कलुषितता को समाप्त करवा कर ज्ञान, सुख, समृद्धि, आनन्द, एकाग्रता और मन की शांति प्राप्ति करने का एक प्रयास करते हैं और हम परमार्थ भाव से इस असार संसार में ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ की भावना से ‘सर्व जन सुखाय, सर्व जन हिताय’ की भावना रख कर जीवन में अग्रसर हो सकेंगे। सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना! ! क्या रखा है इस असार संसार में, अपना कुछ नहीं फिर भी हम उसे अपना समझते हैं, श्रेष्ठ वह है जो बिना दिखावे के परोपकार में लगा रहे, अपने लिए पशु पक्षी सब जीते हैं परन्तु जो दूसरों के लिए कुछ त्याग करता है वह महत्वपूर्ण है, आज का दिन यह सब याद दिलाता है।

कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली
जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास स्नान करते हैं उनका नियम कार्तिक पूर्णिमा को पूरा हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को सुबह श्री सत्यनारायण व्रत की कथा सुनी जाती है। सायंकाल देव-मन्दिरों,  पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगा जी को भी दीपदान किया जाता है। काशी में यह तिथि देव दीपावली महोत्सव के रूप में मनाई जाती है।

विशाखासु यदा भानु: कृतिकासु च चन्द्रमा ।
स योग: पद्मको नाम पुष्करे स्वाति दुर्लभ: ।।

आत्म कल्याण चाहने वाले व्यक्ति यथा शक्ति सूर्य गुरु ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान अवश्य करें। सायंकाल देवमंदिरों, पीपल के वृक्षों, तुलसी के पौधों में दीपक जला कर गङ्गा जी में भी दीप दान अवश्य करें। गङ्गा स्नान व अपने मनोरथों को पूर्ण करने के लिए आज से पूर्णिमा का व्रत प्रारम्भ कर प्रत्येक पूर्णिमा का व्रत करना श्रेयस्कर है। अतः जप, दान, पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। आज चन्द्र दर्शन होने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनसूया, क्षमा और सन्तति, इन छः कृतिकाओं का पूजन-अर्चन करने से अधिक पुण्य का फल मिलता है, अतः अर्जित करें वह पुण्य।

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन:।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: ।।

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