आज कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली, जानें स्नान व दान का महत्व

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

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आज सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन गंगा स्नान और सायंकाल में दीपदान का विशेष महत्व है। इसी पूर्णिमा के दिन सायंकाल भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस कारण इसमें किए गए दान, जपादि दस यज्ञों के समान फल होता है। आज चान्द्रायण व्रत समापन, गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस, सायंकाल भगवान का मत्स्यावतार, भीष्म पंचक समाप्ति भी है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। आज के जपादि का फल दस यज्ञों के समान मिलता है। पद्म पुराण में वर्णित है कि –

वरा्न् दत्वा यतो विष्णु र्मत्स्यरूपोऽभवत् तत:।
तस्यां दत्तं हुतं जप्तंदशयज्ञफलं स्मृतम् ।।

आज का दिन हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हम अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने के लिए अपने हितार्थ अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता महसूस करते हैं जिससे यह दीप महोत्सव हमारे जीवन और समाज के जीवन के अन्धकार और अज्ञान की कलुषितता को समाप्त करवा कर ज्ञान, सुख, समृद्धि, आनन्द, एकाग्रता और मन की शांति प्राप्ति करने का एक प्रयास करते हैं और हम परमार्थ भाव से इस असार संसार में ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ की भावना से ‘सर्व जन सुखाय, सर्व जन हिताय’ की भावना रख कर जीवन में अग्रसर हो सकेंगे। सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना! ! क्या रखा है इस असार संसार में, अपना कुछ नहीं फिर भी हम उसे अपना समझते हैं, पर दु:ख कातर को श्रेष्ठ नहीं समझते हैं, श्रेष्ठ वह है जो बिना दिखावे के परोपकार में लगा रहे, अपने लिए पशु पक्षी सब जीते हैं परन्तु जो दूसरों के लिए कुछ त्याग करता है वह महत्वपूर्ण है, आज का दिन यह सब याद दिलाता है।

कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली
जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास स्नान करते हैं उनका नियम कार्तिक पूर्णिमा को पूरा हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को सुबह श्री सत्यनारायण व्रत की कथा सुनी जाती है। सायंकाल देव-मन्दिरों,  पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगा जी को भी दीपदान किया जाता है। काशी में यह तिथि देव दीपावली महोत्सव के रूप में मनाई जाती है।

आज दिन में गङ्गा स्नान व सायंकाल दीप प्रज्वलित करने का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो (होता ही है) और सूर्य यदि विशाखा नक्षत्र में हो तो पद्मक योग होता है। जबकि इस वर्ष अधिकांश ऐसा है, भले ही सूर्य अनुराधा नक्षत्र में है, आज सायं दो बजकर पचास मिनट तक पूर्णिमा है व आज अपराह्न एक बजकर छत्तीस मिनट तक कृतिका नक्षत्र है, ऐसे दिन सूर्य स्तोत्र, गुरु स्तोत्र का पाठ, पुण्य अर्जित करने के लिए कृतिका के स्वामी सूर्य के दर्शन से अनन्त कोटि फल की प्राप्ति होती है।

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विशाखासु यदा भानु: कृतिकासु च चन्द्रमा ।
स योग: पद्मको नाम पुष्करे स्वाति दुर्लभ: ।।

आत्म कल्याण चाहने वाले व्यक्ति यथा शक्ति सूर्य गुरु ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान अवश्य करें। सायंकाल देवमंदिरों, पीपल के वृक्षों, तुलसी के पौधों में दीपक जला कर गङ्गा जी में भी दीप दान अवश्य करें। गङ्गा स्नान व अपने मनोरथों को पूर्ण करने के लिए आज से पूर्णिमा का व्रत प्रारम्भ कर प्रत्येक पूर्णिमा का व्रत करना श्रेयस्कर है। अतः जप, दान, पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। आज चन्द्र दर्शन होने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनसूया, क्षमा और सन्तति, इन छः कृतिकाओं का पूजन-अर्चन करने से अधिक पुण्य का फल मिलता है, अतः अर्जित करें वह पुण्य।

आज के दिन यह सब समझते हुए हम परमात्म तत्व शोधन की चिन्ता में लीन रहें। कहीं न कहीं गीता के उपदेश का पालन अवश्य करें।
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन:।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: ।।

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चिन्तन का विषय यह है कि आत्मा बुद्धि से श्रेष्ठ है। भौतिक पदार्थों की कोई अहमियत नहीं है। ईश्वर से प्रार्थना है कि हम श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनें।

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