पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।
आज का विचार
विपत्ति में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसे भगवान की देन मानकर संपत्ति के रूप में स्वीकार करना चाहिए। संसार छोड़ने से परमात्मा नहीं मिलता परंतु परमात्मा के मिलने से दुनिया अपने आप छूट जाती है.!
आज का भगवद् चिंतन
संत की पहचान
चिंता संत और संसारी दोनों के मन में होती है पर संत परमार्थ के लिए चिंतित रहता है और संसारी स्वार्थ के लिए चिंचित रहता है। संत और संसारी के बीच का जो भेद होता है, वह कर्मगत नहीं अपितु भावगत होता है। दोनों में वाह्य स्थिति का नहीं अपितु अंतःस्थिति का भेद होता है। संसारी भी क्रोध करता है और संत भी क्रोध करता है। संसारी लोभ करता है और संत में भी लोभ देखने को मिल जाता है।
संसारी भी अर्जन करता है और संत भी अर्जन करता है। संसारी यदि संग्रह करता है तो संत भी संग्रह करता है। दोनों की क्रिया में समानता होने के बावजूद भी भाव एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं। यदि आपके जीवन में भी संग्रह है, लोभ है पर आप अपने द्वारा अर्जित संपत्ति का उपयोग परहित-परोपकार और परमार्थ में करते हैं और आप दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी मानते हैं तो सच समझना फिर आप संसार में रहते हुए और संसारी दिखते हुए भी संत ही हैं।