आज का पंचांग: 18 जनवरी, शुभ-अशुभ मुहूर्त का समय

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

सुप्रभातम्,

आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज बुधवार को भी प्रस्तुत कर रहा है आपके लिए पंचांग, जिसको देखकर आप बड़ी ही आसानी से पूरे दिन की प्लानिंग कर सकते हैं।

बृहस्पतिवार, जनवरी 18, 2024
सूर्योदय: 07:15
सूर्यास्त: 17:48
तिथि: अष्टमी – 20:44 तक
नक्षत्र: अश्विनी – 02:58, जनवरी 19 तक
योग: सिद्ध – 14:48 तक
करण: विष्टि – 09:22 तक
द्वितीय करण: बव – 20:44 तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: गुरुवार
अमान्त महीना: पौष
पूर्णिमान्त महीना: पौष
चन्द्र राशि: मेष
सूर्य राशि: मकर
शक सम्वत: 1945 शोभकृत्
विक्रम सम्वत: 2080 नल

तिथि अष्टमी 20:49 तक
नक्षत्र अश्विनी 26:59 तक
प्रथम करण विष्टि 09:23 तक
द्वितीय करण बाव 20:49 तक
पक्ष शुक्ल
वार गुरुवार
योग सिद्ध 14:43 तक
सूर्योदय 07:18
सूर्यास्त 17:43
चंद्रमा मेष
राहुकाल 13:49 − 15:07
विक्रमी संवत् 2080
शक संवत 1944
मास पौष
शुभ मुहूर्त अभिजीत 12:10 − 12:52

आज का विचार

आत्मा को जानने वाला शोक से तर जाता है। उसे कोई दुःख प्रभावित नहीं कर सकता। उसके चित्त को कोई भी दुःख चलायमान नहीं कर सकता।

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आज का भगवद् चिंतन

त्याग की महिमा

मानव जीवन में त्याग की महती भूमिका मानी गई है। यहां तक कि हमें दूसरी सांस लेने के लिए पहली सांस का त्याग करना पड़ता है। त्याग मात्र एक कर्म ही नहीं, अपितु यह एक भाव है। यह हमें सांसारिक मोह से अलग करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी निर्णायक बनता है। महाभारत के शांति पर्व में कहा गया है कि ‘त्याग के समान कोई सुख नहीं है।’ स्वामी रामतीर्थ भी कहते हैं कि ‘त्याग के सिवा इस संसार में दूसरी कोई शक्ति नहीं है।’ मनुष्य ही नहीं साक्षात ईश्वर को भी बिना त्याग के यश एवं वैभव की प्राप्ति नहीं हुई। त्याग की ऐसी प्रतिमूर्ति के रूप में भगवान श्रीराम का नाम सर्वोपरि माना जाता है। पिता की आज्ञा का मान रखकर राजपाट त्यागकर भगवान राम ने वन गमन को वरीयता दी। वनवास की ओर कदम बढ़ाने से पहले वह सिर्फ राम थे, लेकिन वनवास पूरा होने के बाद वह मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

इसी प्रकार अर्जुन और दुर्योधन महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण से मदद मांगने पहुंचे। तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण की नारायणी सेना का त्यागकर श्रीकृष्ण को चुना, क्योंकि अर्जुन जानते थे कि भगवान का साथ होना ही बहुत है। यदि अर्जुन सेना का मोह करते तो कदाचित महाभारत का परिणाम ही कुछ और होता। राजकुमार सिद्धार्थ ने सांसारिक मोह का त्याग मानवता को दुख से मुक्ति दिलाने के लिए किया। इसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वह सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। आधुनिक इतिहास में महात्मा गांधी ने त्याग का एक अनुपम उदाहरण हम सबके समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने देश के हित और स्वाधीनता के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग किया। सुखों के त्याग से उनका व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना कि वह राष्ट्रपिता बन गए। वास्तव में जो व्यक्ति दूसरों के हित में अपने सुखों का त्याग कर सकता है, वही साधारण मनुष्य से ऊपर उठकर एक महामानव बनता है। ऐसे महामानव ही समाज, देश और सृष्टि के कल्याण का निमित्त बनते हैं।

– पुष्पेंद्र दीक्षित

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पढ़ते रहिए हिमशिखर खबर, आपका दिन शुभ हो… 

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