पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है।
वासुदेव श्रीकृष्ण के अनुसार छल कपट ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा पाप कर्म है। श्री कृष्ण कहते हैं व्यक्ति काम, लोभ और क्रोध तीनों के वश में होकर पाप करता है। लालच और कुछ नहीं बल्कि उसकी तीव्र इच्छा का ही परिणाम है, जबकि क्रोध एक तरह की कुंठित इच्छा है। इसलिए श्रीकृष्ण वासना या तीव्र इच्छा को ही सभी बुराइयों की जड़ बताते हैं।
जब अर्जुन युद्ध से पहले घबरा गया था और उसे लग रहा था कि वह कोई बड़ा पाप करने जा रहा है तब श्रीकृष्ण ने उसे गीता सार सुनाते हुए पाप और पुण्य की व्याख्या से परिचित करवाया था। श्रीकृष्ण के अनुसार अपने कर्तव्य पथ से भागना और दूसरों की निजता का हनन करना ही पाप है और अपने कर्तव्यों का पालन संपूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करना ही पुण्य है।
जीव हत्या सबसे बड़ा पाप है, अनावश्यक हरे पेड़ों को काटना भी पाप है। हिंसा, चोरी, काम, चुगलखोरी, निष्ठुर भाषण, झूठा व्यवहार, भेद युक्त बातों से दिल दुखाना, नास्तिकता और अवैध आचरण यह सब पाप कर्म के प्रकार हैं। इन्हें शरीर, वाणी और मन से छोड़ देना ही उचित है।
कृष्ण कहते हैं, हे अर्जुन! जैसे सूर्य उदय होते ही रात का अंधकार नष्ट हो जाता है वैसे ही ज्ञान का प्रकाश अज्ञान के अंधकार को नष्ट कर देता है। फिर मनुष्य परमात्मा की तरफ जाने वाले रास्ते से कभी नहीं भटकता, ज्ञान का साक्षात्कार होने के कारण यह बात मनुष्य के समझ में आ जाता है कि कैसे एक ही कर्म पाप और वही कर्म पुण्य कैसे होता है?
अर्जुन असमंजस की स्थिति में आकर कहते हैं, “हे केशव! एक ही कर्म पाप और पुण्य कैसे हो सकता है”? तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं मान लो एक मनुष्य किसी कमजोर बूढ़े मनुष्य का धन लूटने के लिए उसकी हत्या कर देता है तो वह क्या है? अर्जुन कहते हैं कि यह तो पाप है। और यदि एक दुष्ट मनुष्य किसी अबला स्त्री के सम्मान का हनन कर रहा हो तो उस अबला की रक्षा के लिए यदि किसी ने उस दुष्ट की हत्या कर दी तो वह क्या होगा? अर्जुन कहते हैं “यह तो स्पष्ट है कि किसी असहाय स्त्री की रक्षा करना पुण्य ही होगा”। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं “तुमने स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया है पार्थ”।
इसको और अधिक समझाते हुए श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि यहां पर कर्म तो वही रहा किसी की हत्या करना परंतु उस कर्म के पीछे भावना क्या है? करने वाले की मंशा क्या है? इसी फर्क के वजह से एक ही कर्म पाप भी हो सकता है अथवा पुण्य भी हो सकता है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं “मनुष्य जिस भावना से अपना कर्म करता है उसी के हिसाब से वह पाप और पुण्य में बदलता है। कर्म के इस ज्ञान के द्वारा मनुष्य को कर्म, अकर्म और विक्रम का अर्थ पता चल जाता है”।
श्रीकृष्ण के अनुसार मनुष्य धरती पर रहकर जो भी अच्छे या बुरे कर्म करता है उन सभी कर्मों का लेखा-जोखा मृत्यु के बाद किया जाता है, उसके अनुसार ही उसे सजा और पुनर्जन्म मिलता है। ईश्वर की दृष्टि में जो आपके अच्छे कर्म होते हैं उसे पुण्य कहा जाता है और जो बुरे कर्म होते हैं उन्हें पाप कहा जाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि कोई मनुष्य धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए क्रोध करे तो वह क्रोध भी पुण्य बन जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि किसी की सहनशीलता धर्म और मर्यादा को न बचा पाए तो वह पाप का भागी होता है।
आज का पंचांग
शुक्रवार, नवम्बर 29, 2024
सूर्योदय: 06:55
सूर्यास्त: 17:24
तिथि: त्रयोदशी – 08:39 तक
नक्षत्र: स्वाती – 10:18 तक
योग: शोभन – 16:34 तक
करण: वणिज – 08:39 तक
द्वितीय करण: विष्टि – 21:38 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: शुक्रवार
अमान्त महीना: कार्तिक
पूर्णिमान्त महीना: मार्गशीर्ष
चन्द्र राशि: तुला – 06:03, नवम्बर 30 तक
सूर्य राशि: वृश्चिक
मनुष्य के शरीर से भोग, भोजन और नींद इन तीन का संतुलन बिगड़ जाए तो समझ लीजिए कि हम शरीर का दुरुपयोग कर रहे हैं। परिश्रम तो बहुत बाद में आता है। बहुत सारे मनुष्यों का शरीर परिश्रमी होता है, लेकिन ये तीन दुर्गुण उसके परिश्रम को व्यर्थ कर देते हैं। श्रीराम कहते हैं, मनुष्य का शरीर मिला है, तो मेरी बात ध्यान से सुनो। ‘जौं परलोक इहां सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयं दृढ़ गहहू।’
‘यदि परलोक में और यहां दोनों जगह सुख चाहते हो, तो मेरे वचन सुनकर उन्हें हृदय में दृढ़ता से पकड़ रखो।’ यह पंक्ति उन्होंने बहुत अच्छी बोली है कि मेरे वचन को हृदय में पकड़कर रखो। हमारे माता-पिता, गुरुजन और विद्वान लोग, जब हमें कोई अच्छी बात बोलें, तो उन विचारों को पकड़ लेना चाहिए, जकड़ लेना चाहिए, क्योंकि विचार भी बहुत तेजी से बह जाते हैं। और शरीर के मामले में तो जो विचार समझदारों ने हमें दिए हैं, उसको स्वीकारें।