सुप्रभातम् : तुलसीदास ने भगवान राम के दर्शन किए, हनुमान जी ने की सहायता’

Uttarakhand

भगवान श्रीराम की उनकी रचनाओं पर विशेष कृपा के चलते तुलसीदास जी सांसारिक जीवन से विरक्त संत हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास को अपने जीवनकाल में भगवान राम के दर्शन हुए थे। आज हम आपको इसी से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। कहते है कि भगवान राम के दर्शन करवाने के लिए हनुमान जी ने तुलसीदास की सहायता की थी। तो आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा के बारे में-


हिमशिखर धर्म डेस्क

तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में राम कथा करते समय इनकी भेंट हनुमान जी से हुई।

तुलसीदास जी ने हनुमान जी से कहा, कृपा करके मुझे प्रभु श्रीराम जी से मिलवा दो। जीवन में अब और कोई अभिलाषा नहीं बची हैं। जीवन में एक बार राम जी के साक्षात दर्शन हो जाएं, आप ही राम जी से मिलवा सकते हो। अगर आप नहीं मिलवाओगे तो कौन मिलवायेगा?

हनुमानजी बोले कि आपको रामजी जरूर मिलेंगे और मैं मिलवाऊँगा लेकिन उसके लिए आपको चित्रकूट चलना पड़ेगा, वहाँ आपको भगवन मिलेंगे।

तुलसीदासजी चित्रकूट गए। मन्दाकिनी जी में स्नान किया और अब घूम रहे हैं कहाँ मिलेंगे? कहाँ मिलेंगे?

सामने से घोड़े पर सवार होकर दो सुकुमार राजकुमार कांधे पर धनुष बाण लिए हुए आये। एक गौर वर्ण और एक श्याम वर्ण और तुलसीदासजी इधर से निकल रहे हैं। उन्होंने पूछा कि हमको रास्ता बता तो हम भटक रहे हैं।

तुलसीदासजी ने रास्ता बताया कि बेटा इधर से निकल जाओ और वो निकल गए। अब तुलसीजी पागलों की तरह खोजते हुए घूम रहे हैं कब मिलेंगे? कब मिलेंगे?

हनुमानजी प्रकट हुए और बोले कि मिले?

तुलसीदासजी बोले – कहाँ मिले? मुझे तो अभी तक दर्शन नहीं हुए और आप पूछ रहे हो कि मिले क्या प्रभु, क्यो हंसी उड़ाते हो मेरी ।

इस पर हनुमान जी बोले कि मैं हंसी नही उड़ा रहा आपकी, अभी जो दो राजकुमार आपसे रस्ता पूछ रहे थे वो ही तो थे रघुबीर और लक्षमण जी। आप चूक गए तुलसी जी, प्रभु को पहचान नहीं पाए। ऐसे ही पता नही प्रभु कितनी बार कितने रूपो में हमसे मिलने आते हैं और हम मूर्ख उन्हें पहचान नहीं पाते हैं ।

तुलसीदास जी ने हनुमान जी के पैर पकड़ लिए और कहा कि आज बहुत बड़ी गलती हो गई। फिर कृपा करवाओ। फिर मिलवाओ।

हनुमानजी बोले कि थोड़ा धैर्य रखो। एक बार फिर मिलेंगे। प्रभु भक्तों को निराश नहीं करते हैं ।

अब अगले दिन फिर से तुलसीदास जी घाट पर स्नान करके बैठे हैं और घाट पर चन्दन घिस रहे हैं। मगन हैं और प्रभु श्रीराम जी के भजन गा रहे हैं। श्री राम जय राम जय जय राम। ह्रदय में एक ही लग्न है कि भगवान कब आएंगे।

और प्रभु श्रीराम जी एक बार फिर से कृपा करते हैं। प्रभु जी एक बालक के रूप में आते है और कहते हैं बाबा.. बाबा… चन्दन तो आपने बहुत प्यारा घिसा है। थोड़ा सा चन्दन हमें दे दो… लगा दो।

तुलसीदास जी को लगा कि कोई बालक होगा। चन्दन घिसते देखा तो आ गया। तो तुरंत लेकर चन्दन प्रभु श्रीराम जी को दिया और प्रभु श्रीराम जी लगाने लगे ।

हनुमानजी महाराज समझ गए कि आज तुलसी जी फिर चूके जा रहे हैं। आज राम जी फिर से इनके हाथ से निकल रहे हैं।

तभी हनुमानजी तोता बनकर आ गए और घोषणा कर दी कि-

चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर।

          तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।

हनुमानजी की ये वाणी सुन कर तुलसीजी समझ गए कि जो उनसे चंदन ग्रहण कर रहे हैं वो साक्षात प्रभु श्रीराम जी हैं, उनके आराध्य हैं। अब चूक नहीं होनी चाहिए इतना सोचकर तुलसीदास जी चरणों में गिर गए राम जी के, वो तो चन्दन लगा रहे थे। बोले प्रभु अब आपको नहीं छोडूंगा। जैसे ही पहचाना तो प्रभु अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए हैं और कुछ ही पल में प्रभु श्रीराम जी अंतर्ध्यान हो गए और वो झलक तुलसी जी की आखों में बस गई ह्रदय तक उतरकर गई।

फिर कोई अभिलाषा जीवन में नहीं रही है। परम शांति। परम आनंद जीवन में आ गया श्रीराम जी के मिलने से।

और इस तरह से तुलसीदास जी का राम से मिलन हनुमानजी ने करवाया है।

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