विनायक चतुर्थी आज : गणेश जी के साथ ही सूर्य पूजा भी करें, गणेश जी को दूर्वा जरूर चढ़ाएं

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय स्थान प्राप्त है। हर माह दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है।

आज रविवार को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है। इस तिथि पर गणेश जी के लिए व्रत-उपवास किया जाता है। रविवार को चतुर्थी होने से इस दिन गणेश जी के साथ सूर्य की भी पूजा करनी चाहिए।

गणेश चतुर्थी का व्रत जीवन में सुख-शांति की कामना से और जीवन साथी और संतान के सौभाग्य के लिए भी किया जाता है। रविवार को अश्विनी नक्षत्र होने से रवि नाम का शुभ योग भी रहा है। चतुर्थी, रविवार और रवि योग की वजह इस दिन किए गए पूजा-पाठ जल्दी सफल हो सकते हैं।

ये है गणेश जी की पूजा की सरल विधि

विनायकी चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल अर्पित करें। ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद घर के मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा पर शुद्ध जल, पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद फिर से शुद्ध जल चढ़ाएं। हार-फूल, जनेऊ, चावल, मोदक, दूर्वा आदि चीजें चढ़ाएं। वस्त्र अर्पित करें। धूप-दीप जलाएं और आरती करें।

गणेश पूजा में दूर्वा घास जरूर रखें। गणेश जी को दूर्वा के जोड़े बनाकर चढ़ाना चाहिए। 22 दूर्वा को जोड़ने पर दूर्वा के 11 जोड़े तैयार हो जाते हैं। ये 11 जोड़े गणेश जी को चढ़ाएं। ध्यान रखें दूर्वा किसी साफ जगह पर उगी हुई होनी चाहिए या किसी मंदिर के बगीचे में उगी हुई दूर्वा धोकर भगवान को अर्पित करें। जिस जगह गंदगी हो, वहां की दूर्वा नहीं लेनी चाहिए। दूर्वा चढ़ाते समय गणेश जी के 11 मंत्रों का जाप करना चाहिए।

गणेश पूजा में इन 11 मंत्रों के जाप करें

ऊँ गं गणपतेय नम:, ऊँ गणाधिपाय नमः, ऊँ उमापुत्राय नमः, ऊँ विघ्ननाशनाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः, ऊँ एकदन्ताय नमः, ऊँ इभवक्त्राय नमः, ऊँ मूषकवाहनाय नमः, ऊँ कुमारगुरवे नमः

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