सुप्रभातम्: क्या है कर्णवेध संस्कार का महत्व, क्यों है जरूरी

हिंदू धर्म में किए जाने वाले 16 संस्कारों में से कर्णभेदन नौवां संस्कार है। कर्ण भेदन यानि कान छेदना या कान भेदन करना। इस संस्कार में बच्चे के कान को छिदवाया जाता है और सोने या चांदी एक सुनहरा तार पहना दिया जाता है। इसके साथ ही बालक  के कल्याण और आने वाले जीवन की शुभ कामना के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। सनातन धर्म में हर कार्य के लिए दिन तिथि और मुहूर्त का बहुत ध्यान रखा जाता है। इसी तरह से कर्णभेदन संस्कार के लिए आपको मुहूर्त और विधि-विधान का ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कर्ण भेदन संस्कार का महत्व, विधि और समय…

Uttarakhand

हिमशिखर खबर ब्यूरो

कर्णवेध संस्कार को 6 माह से लेकर 16 माह तक अथवा 3, 5 आदि विषम वर्षों में या कुल की परंपरा के अनुसार उचित आयु में किया जाता है। इसे स्त्री-पुरुषों में पूर्ण स्त्रीत्व एवं पुरुषत्व की प्राप्ति के उद्देश्य से कराया जाता है। मान्यता यह भी है कि सूर्य की किरणें कानों के छिद्र से प्रवेश पाकर बालक-बालिका को तेज संपन्न बनाती हैं। बालिकाओं के आभूषण धारण हेतु तथा रोगों से बचाव हेतु यह संस्कार आधुनिक एक्युपंचर पद्धति के अनुरूप एक सशक्त माध्यम भी है।

हमारे शास्त्रों में कर्णवेध रहित पुरुष को श्राद्ध का अधिकारी नहीं माना गया है। देवल स्मृति ने स्पष्ट कहा है कि जिस व्यक्ति के कर्णरन्ध्र में सूर्य की किरणें प्रविष्ट नहीं हो पाती, उसको देखते ही सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। यदि कर्णवेध संस्कार न किए गए ब्राह्मण को श्राद्ध में निमन्त्रित कर लिया जाए, तो निमन्त्रित करने वाला व्यक्ति असुर हो जाता है-

‘तस्मै श्राद्धं न दातव्यं, यदि चेदसुरं भवेत्।

ब्राह्मण और वैश्य का कर्णवेध चांदी की सुई से, शुद्र का लोहे की सुई से तथा क्षत्रिय और संपन्न पुरुषों का सोने की सुई से करने का विधान है।

शुभ समय में, पवित्र स्थान पर बैठकर देवताओं का पूजन करने के पश्चात् सूर्य के सम्मुख बालक या बालिका के कानों को निम्न मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करना चाहिए

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥ -यजुर्वेद 25/21

इसके बाद बालक के दाहिने कान में पहले और बाएं कान में बाद में सुई से छेद करें उनमें कुंडल आदि पहनाएं। बालिका के पहले बाएं कान में, फिर दाहिने कान में छेद करके तथा बाएं नाक में भी छेद करके आभूषण पहनाने का विधान है।

मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशील बनाने के लिए नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना लाभकारी माना गया है। नाक में नथुनी पहनने से नासिका संबंधी रोग नहीं होते और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *