हिमशिखर खबर ब्यूरो।
चरणदास बाबा एक सिद्ध पुरुष थे। पश्चिम बंगाल के नवदीप में अपने आश्रम में रह कर वे साधना करते थे। उनमें आश्रम में एक कुतिया रहती थी, जिसे बाबा प्रेम से ‘भक्ति मां’ कह कर पुकारते थे। आश्रम में संतों के समान ही वह कुतिया मर्यादा का पालन करती थी तथा उसकी यथेष्ठ सेवा की जाती थी।
कुछ दिनों तक ज्वर से आक्रान्त हो कुतिया का देहान्त हो गया। चरणदास बाबा ने उसके पार्थिव शरीर को गंगा में बहा दिया। बाबा की इच्छा ‘भक्ति मां’ का श्राद्ध करने की हुई तथा उस उपलक्ष्य में उन्होंने नवद्वीप की सभी वैष्णव मण्डलियों को एक दिन श्राद्ध-भोज में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया। बाबा ने यह भी निश्चित किया, कि भक्ति मां के जाति-भाइयों यानी नवद्वीप के कुकुर समाज को भी उस दिन श्राद्ध भोज खिलाएंगे।
चरण दास बाबा के इस कदम पर सभी आश्चर्यचकित थे, एक कुतिया का श्राद्ध-भोज। फिर उसके श्राद्ध-भोज के उपलक्ष्य में वैष्णवों के साथ कुकुरों को भी खिलाया जाएगा।
दरअसल, चरण दास बाबा की ख्याति एक सिद्ध पुरुष के रूप में थी। अतः किसी ने भी उनके इस कदम के विरूद्ध मुंह खोलने का साहस नहीं किया। नवद्वीप के वैष्णवों को ‘भक्ति मां’ के श्राद्ध भोज में भाग लेने का निमंत्रण भेजा गया। लेकिन इसके साथ ही देखा गया, कि जहां भी कोई कुकुर दिखता, वहीं बाबा जी के शिष्य हाथ जोड़ कर निवेदन कर कहते कि ‘भक्ति मां’ के श्राद्ध भोज में आपको बाबा जी ने सादर आमंत्रित किया है। आप अवश्य पधारें।
श्राद्ध भोजन के दिन निमंत्रित अतिथियों ने यह कह कर भोज पंक्ति में बैठने से इंकार कर दिया, कि रास्ते के कुकुरों को भी आमंत्रित कर उनका अपमान किया गया है। उधर, बाबा के शिष्य असमंजस में थे। नवद्वीप के सभी कुकुर भोजन की गंध से आकर्षित होकर आ सकते हैं, लेकिन सभी कुकुर कैसे आएंगे? वे मनुष्य की भाषा कब से समझने लगे?
चरण दास बाबा आश्रम के द्वार पर अविचल भाव से खड़े थे। कुछ क्षण बाद आश्रम में उपस्थित अतिथियों तथा आश्रमवासियों ने एक अलौकिक घटना देखी। सैकड़ों कुकुर आश्रम की तरफ बढ़े आ रहे थे।
उन सभी ने आश्रम में प्रवेश किया। भोज समाप्त कर सभी कुकुर वापस चले गए। जिसने देखा, वही हैरान था। इसके बाद बाबा से क्षमा मांग कर अतिथियों ने प्रेमपूर्वक श्राद्ध-भोज ग्रहण किया। नवद्वीप में इस अलौकिक घटना की गूंज बहुत दिनों तक रही।