बड़ा सवाल: कब मनाएं धनतेरस, आज 22 या कल 23 अक्टूबर ? जानिए शुभ मुहूर्त

धनतेरस 22 अक्टूबर को है या 23 अक्टूबर को। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरस के दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु भविष्य में तेरह गुना बढ़ जाती है। धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण, धातु के बर्तन और झाड़ू खरीदना बेहद शुभ माना जाता है।

Uttarakhand

मुख्य बातें
  1. इस बार त्रयोदशी तिथि के संयोग से ऐसा हो रहा है। दरअसल धनतेरस की तिथि 22 अक्टूबर की शाम से शुरू होकर 23 अक्टूबर की शाम तक रहेगी।
  2. धनतेरस की खरीदारी के लिए 23 अक्टूबर का दिन ज्यादा शुभ रहेगा।

हिमशिखर धर्म डेस्क

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाई जाती है। इस दिन से पांच दिवसीय दिवाली उत्सव की शुरुआत होती है। माना जाता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जी के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक माने जाते हैं। इसलिए धनतेरस का दिन चिकित्सकों के लिए विशेष महत्व रखता है। हालांकि इस बार धनतेरस की सही तारीख क्या है इसको लेकर लोगों में कंफ्यूजन बना हुआ है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य पंडित हर्षमणि बहुगुणा, पंडित उदय शंकर भट्ट, पंडित बसुदेव सेमवाल के अनुसार जानते हैं धनतेरस की सही तारीख –

कब है धनतेरस?

कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि आज 22 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 02 मिनट से शुरू हो रही है और 23 अक्टूबर 2022 को त्रयोदशी तिथि का शाम 06 बजकर 03 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार इस बार धनतेरस आज शाम 06 बजकर 03 मिनट से कल शाम 6 बजे तक खरीदारी की जा सकती है। हालांकि, उदया तिथि के अनुसार धन्वंतरि जयंती कल 23 को ही मनाई जाएगी। साथ ही धनतेरस की खरीदारी के लिए 23 अक्टूबर का दिन ज्यादा शुभ रहेगा।

अगर कोई शुभ काम शुभ समय में किया जाए, तो उससे मिलने वाले लाभ में अपने आप ही बढ़ोतरी हो जाती है। अतः शुभ समय में धनतेरस की खरीदारी करके आप ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं।

सेहत सबसे बड़ा धन इसलिए धन्वंतरि की पूजा

आमतौर पर लोग धनतेरस को पैसों से जोड़कर देखते हैं लेकिन ये आरोग्य नाम के धन का पर्व है। पूरे साल अच्छी सेहत के लिए इस दिन आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की पूजा होती है। विष्णु पुराण में निरोगी काया को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। सेहत ही ठीक न हो तो पैसों का सुख महसूस नहीं होता इसलिए धन्वंतरि पूजा की परंपरा शुरू हुई।

पौराणिक कथा के मुताबिक, समुद्र मंथन के वक्त शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक महीने की बारहवीं तिथि को कामधेनु गाय और अगले दिन यानी त्रयोदशी पर धन्वंतरि हाथ में सोने का कलश लेकर प्रकट हुए। जिसमें अमृत भरा हुआ था। उनके दूसरे हाथ में औषधियां थी और उन्होंने संसार को अमृत और आयुर्वेद का ज्ञान दिया। यही वजह है कि इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। पुराणों में इन्हें भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *