हिमशिखर धर्म डेस्क
गीता (३।३६) में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मनुष्य न चाहते हुए भी कौन-सी शक्ति से प्रेरित होकर बलात् लगाया हुआ-सा अनुचित कार्य कर बैठता है?
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया–पाप होने का कारण कामना है। भोग भोगने की कामना, पदार्थों के संग्रह की कामना, रुपया, मान-बड़ाई, नीरोगता, आराम आदि की चाहना ही सम्पूर्ण पापों और दु:खों की जड़ है।
गीता (१६।२१) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
अर्थात्–काम, क्रोध तथा लोभ–ये तीन प्रकार के नरक के द्वार, आत्मा का नाश करने वाले और मनुष्य को अधोगति में ले जाने वाले हैं; इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
रामचरितमानस (सुन्दरकाण्ड, ३८) में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं–
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहूँ भजहिं जेहि संत।।
काम, क्रोध, मद (अभिमान), लोभ ये सभी नरक में ले जाने वाले रास्ते हैं, इसलिए इन सभी का त्याग करके श्रीरामजी, जिनका संतजन भजन करते हैं, उनसे ही प्रेम करो, उनका ही भजन करो।
काम, क्रोध व लोभ
भोगों की कामना का नाम ‘काम’ है। इसी कामना के वश होकर मनुष्य चोरी, व्यभिचार आदि पाप करता है।
मन के विपरीत होने पर जो उत्तेजना उत्पन्न होती है उसे ‘क्रोध’ कहते हैं। क्रोधवश भी मनुष्य हिंसा आदि पाप करता है।
धन आदि की बहुत अधिक लालसा को ‘लोभ’ कहते हैं। लोभ केवल धन का ही नहीं होता वरन् संग्रह करने की आदत भी लोभ का परिणाम है। इसके कारण मनुष्य झूठ, कपट, चोरी, विश्वासघात आदि पाप करता है। इसलिए इन तीन दोषों को ‘आत्मा का नाश करने वाला’ व ‘पाप का बाप’ कहा गया है।