सुप्रभातम्:गंगा सप्तमी आज, गंगा स्नान से 10 पाप होते हैं समाप्त

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के सातवें दिन गंगा सप्तमी मनाते हैं। इस बार यह तिथि 14 मई यानी मंगलवार को है। इस दिन गंगा स्नान, व्रत-पूजा और दान का विशेष महत्व है। मान्‍यता है कि जिस दिन मां गंगा का प्राकट्य हुआ था, उस दिन वैशाख मास के शुक्‍ल पक्ष की सप्‍तमी थी। इस दिन गंगा स्नान, व्रत-पूजा-अर्चना करना मनोकामना पूर्ण करता है और पापों का क्षय होता है। इसके साथ ही पितृ दोष की शांति के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।

इस साल गंगा सप्तमी पर तिथि, वार और ग्रह-नक्षत्रों से मिलकर कई शुभ योग बनेंगे। इस कारण ये पर्व और खास हो गया है। इस दिन गंगा के किनारे श्राद्ध करने से पितृ दोष खत्म होता है और अकाल मृत्यु वाले पूर्वजों को मोक्ष मिलता है।

गंगा सप्तमी से जुड़ी मान्यता

1. शास्त्रों की मान्यता है कि वामन भगवान ने राजा बली से 3 पग भूमि नापते समय उनका तीसरा पग ब्रह्मलोक में पहुंच गया, वहां पर ब्रह्मा जी ने वामन भगवान का पद प्राक्षलन करके कमंडल में ले लिया, राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का उद्धार करने के लिए राजा भागीरथ के तप से प्रासन्न होकर गंगा जी शिव की जटाओं में आईं, यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी का ही था।

2. ये भी कहा जाता है कि महर्षि जह्नु जब तपस्या कर रहे थे। तब गंगा नदी के पानी की आवाज से बार-बार उनका ध्यान भटक रहा था। इसलिए उन्होंने गुस्से में आकर अपने तप के बल से गंगा को पी लिया था। लेकिन बाद में अपने दाएं कान से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया था। इसलिए ये गंगा के प्राकट्य का दिन भी माना जाता है। तभी से गंगा का नाम जाह्नवी पड़ा।

गंगा स्नान से 10 पाप होते हैं समाप्त

इस तिथि पर गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और अनंत पुण्यफल मिलता है। इस दिन गंगा स्नान करने से 10 तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। स्मृतिग्रंथ में दस प्रकार के पाप बताए गए हैं। कायिक, वाचिक और मानसिक। इनके अनुसार किसी दूसरे की वस्तु लेना, शास्त्रों में बताई हिंसा करना, पराई स्त्री के पास जाना, ये तीन तरह के कायिक यानी शारीरिक पाप हैं। वाचिक पाप में कड़वा और झूठ बोलना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना और फालतू बातें करना। इनके अलावा दूसरों की चीजों को अन्याय से लेने का विचार करना, किसी का बुरा करने की इच्छा मन में रखना और गलत कामों के लिए जिद करना, ये तीन तरह के मानसिक पाप होते हैं।

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