सुप्रभातम् : संसार में राजा जनक की तरह विदेह भाव से रहिए

हिदीं शब्दकोष में विदेह का अर्थ होता है बिना देह का लेकिन विदेह उसे भी कहते हैं जो देह में रह कर भी देह से पूरी तरह अनासक्त (कहीं दूर चले जाना) हो गया हो। 


हिमशिखर धर्म डेस्क

राजा जनक के दरबार में आए दिन विद्वानों की सभा होती थी। जब सभा बैठती तो पूरी सभा के सभासद और मंत्री विद्वानों से राजा जनक की बातें सुना करते थे और जनक कभी-कभी तो बड़े अद्भुत ढंग से समाधान देते थे। संसार जनक की विद्वत्ता को जानता था। जनक विदेहराज के नाम से भी जाने जाते थे।

एक दिन उनके एक मंत्री ने उनसे कहा – महाराज, लोग आपको विदेह, विदेही ऐसे नामों से पुकारते हैं। जबकि हम देखते हैं कि आपका तो शरीर है। तो आपको ये उपाधि, ये नाम कैसे मिला ये हम जानना चाहते हैं।

जनक ने कहा – इसका जवाब किसी और दिन दूंगा।

बात वहीं खत्म हो गई। अगले दिन राजा जनक ने सभा में उसी मंत्री की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन मंत्री जी से राजकीय कार्य में एक बड़ी चूक हो गई है। इन्हें मृत्युदंड दिया जाता है।

ऐसा कह कर राजा जनक ने फांसी देने का दिन और समय भी तय कर दिया। वो मंत्री घबरा गया। हाथ-पैर कांपने लगे। वो सोचने लगा कि ऐसा क्या हो गया जिसके लिए मृत्युदंड दिया जा रहा है। लेकिन राजा से सवाल नहीं कर सकते थे। वो मंत्री भी विद्वान था उसने सोचा राजा ने सजा दी है तो उसे मानना चाहिए।

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दिन गुजरने लगे। आखिर वो दिन भी आ गया जब मंत्री को फांसी लगाई जानी थी। फांसी से कुछ तीन-चार घंटे पहले राजा जनक ने उस मंत्री को अपने महल बुलवाया। मंत्री उनसे मिलने पहुंचे। कुछ देर में मौत होने वाली है ये सोचकर वे बेचैन भी थे।

महल में राजा के सामने पहुंचे तो देखा वहां भारी दावत का इंतजाम है। तरह-तरह के पकवान, मिठाइयां, भोग रखे हैं। दास-दासियां सेवा के लिए खड़े हैं। राजा जनक ने मंत्री से कहा- आइए, बैठिए भोजन कीजिए।

मंत्री की भूख मर चुकी थी, उसे तो आज होने वाली फांसी की ही चिंता थी। फिर भी राजा की आज्ञा थी तो बैठकर भोजन करने लगे। भोजन करके जब उठे तो राजा जनक ने उनसे पूछा – आपको भोजन कैसा लगा? कौन सी मिठाई सबसे अच्छी लगी?

मंत्री ने कहा – महाराज, कैसी मिठाई, कैसा भोजन? मेरा तो पूरा ध्यान कुछ देर में मिलने वाले मृत्युदंड पर था। कुछ देर में शरीर छूट जाएगा, फांसी लग जाएगी, फिर भोजन का क्या स्वाद?

राजा जनक ने कहा – आप जानना चाहते थे कि विदेह क्या होता है, विदेह भाव किसे कहते हैं, इस समय आप विदेह भाव में हैं। आपको शरीर के सुख और स्वाद की कोई परवाह नहीं रही। मृत्यु सामने है तो शरीर का भान चला गया। जब हम शरीर के बारे में सोचते हैं, तो भोग में डूबते हैं। मैं हमेशा इसी भाव में रहता हूं कि शरीर तो एक दिन खत्म हो जाना है। इसलिए, मैं हमेशा विदेह भाव में रहता हूं।

सबकः राजा जनक के इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि शरीर नश्वर है। मौत एक दिन आनी ही है और ये शरीर जला दिया जाएगा या जमीन में गाड़ दिया जाएगा। आत्मा स्थानांतरित हो जाएगी। इसलिए, हम शरीर के साथ जो भी भोग करें वो इस भाव में करें कि एक दिन इसको समाप्त होना है। यही विदेह भाव है।

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