हिमशिखर धर्म डेस्क
संसार कर्म प्रधान है। भारत की इस पवित्र भूमि में जन्म लेना गर्व की भारत है। देवता भी यही कामना करते हैं कि उन्हें मनुष्य शरीर धारण करना पड़े तो भारत भूमि में ही जन्म लें। हमारे पास यह गौरव है कि हमने वेद-पुराण, शास्त्रों के बीच जन्म लिया है। रामचरितमानस मानव धर्म के सिद्धांतों के प्रयोगात्मक पक्ष का आदर्श रूप प्रस्तुत करने वाला ग्रंथ है। रामचरितमानस के रूप में गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो दिया, उसमें सबसे अद्भुत श्रीराम और हनुमानजी हैं।
संसार में तो एक पशु भी रह सकता है। लेकिन जीने की संभावना सिर्फ मनुष्य में है। रामकथा सुनकर हम स्वर्ग जाएंगे, यह गारंटी नहीं है। लेकिन रामकथा को जीवन में उतारकर जीवन का स्वर्ग जरूर बनाया जा सकता है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना की थी। तुलसीदासजी मे अपने जीवन के आरंभ में ही हम सभी को यह शिक्षा दी कि दुनिया में आपको क्या मिल रहा है, यह नहीं देखा जाएगा। आप दुनिया को क्या दे रहे हैं, ऊपर वाला इसका हिसाब लेगा। रामचरितमानस का दर्शन, विचार, सिद्धांत, नीति शब्दों का गठन सब कुछ अद्भुत है। कहते हैं, कि जिस समय तुलसीदासजी के रामचरितमानस लिखी, उनके दो ही सहारे थे-एक श्रीराम और दूसरे हनुमानजी!
जब रामचरितमानस लिखना आरंभ किया तो कहते हैं, रामचरितमानस के प्रत्येक दृश्य, चौपाई, दोहा, सोरठा, छंद को तुलसीदासजी ने लिखा था। हनुमानजी रामकथा का एक-एक दृश्य दिखाते और तुलसीदासजी लिखते चले जाते। तुलसीदासजी ने जिया है रामकथा को। इसलिए रामकथा हमें जीने की कला सीखाता है।
‘रामचरितमानस’ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन चरित्र को दर्शाने वाला श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिसमें भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन, भक्ति और कविता का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया गया है। उदात्त मानवीय मूल्यों की कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ-साथ समन्वय की विराट चेष्टा इस महाकाव्य में की गई है। एक आदर्श भाई, आदर्श पुत्र, आदर्श राजा, आदर्श स्वामी, आदर्श पति के रूप में श्रीराम का चरित्र अनुकरणीय है। हनुमान सेवक धर्म के आदर्श हैं। आज देश के साथ-साथ विदेशों में भी रामलीला का मंचन हो रहा है और मानव मूल्यों की जो व्याख्या तुलसी जी ने प्रस्तुत की है मनुष्य उसे ग्रहण करने की कोशिश कर रहा है। आधुनिक जीवन में हम रामकथा से सीख ले सकते हैं।
गरिमामय महिमा रामचरित मानस की🙏