सुप्रभातम्: संसार रूपी भवसागर से पार उतारने वाला है यह तारक मंत्र

केवल राम-राम भजने से ही मोक्ष मिल जाता। राम नाम की महिमा अवर्णनीय है। राम-राम हो या फिर श्रीराम जय राम जय जय राम अथवा जय सिया राम, ये बोलने में अत्यंत सहज तथा समस्त कष्ट और दुखों का हरण करने वाले महामंत्र है। कलियुग में नाम जाप का ही फल मिल जाता है। इसलिए हमें चाहिए कि सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्ति के लिए नित्यप्रति श्रीराम नाम का जाप करें।


हिमशिखर धर्म डेस्क

‘राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। राम कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है। हजारों संत और महात्माओं ने राम का नाम जपते-जपते मोक्ष को पा लिया है। ईश्वर-नाम की महिमा साक्षात ईश्वर से भी महान है। समर्थ रामदास स्वामी ने ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ इस त्रयोदशाक्षरी मंत्र के तेरह करोड़ जाप किए और उन्हें भगवान श्रीराम के साक्षात दर्शन हुए। इसको तारक यानी भव सागर से तारने वाला मंत्र भी कहा जाता है। ईश्वर-नाम की महिमा अपरंपार है, इस कलयुग में राम नाम ही सुख शांति का मार्ग है और राम नाम ही इस जीवन रूपी सागर से पार उतार सकता है। क्योंकि श्वास कब पूरे हो जाएं यह कोई नहीं जानता। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सच्चे मन से राम नाम का जाप करना चाहिए।

एक सार्थक नाम के रूप में हमारे ऋषि-मुनियों ने राम नाम को पहचाना है। उन्होंने इस पूज्य नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक सनातनी परिवार में देखा जा सकता है। राम नाम को जीवन का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमय व सर्वमुक्त है। राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य आज यही है कि हम राम नाम का सहारा नहीं ले रहे हैं। हमने जितना भी अधिक राम नाम को खोया है, हमारे जीवन में उतनी ही विषमता बढ़ी है। उतना ही अधिक संत्रास हमें मिला है।

श्री राम, जय राम, जय जय राम। श्री राम जय राम जय जय राम

त्रयोदश शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है।

‘अस समर्थ रघुनायकहिं, भजत जीव ते धन्य’ प्रत्येक राम भक्त के लिए राम उसके हृदय में वास कर सुख सौभाग्य और सांत्वना देने वाले हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिख दिया है कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं, उन सबमें सर्वाधिक श्री फल देने वाला नाम राम का ही है। यह नाम सबसे सरल, सुरक्षित तथा निश्चित रूप से लक्ष्य की प्राप्ति करवाने वाला है। मंत्र जप के लिए आयु, स्थान, परिस्थिति, काल, जात-पात आदि किसी भी बाहरी आडंबर का बंधन नहीं है। किसी क्षण, किसी भी स्थान पर इसे जप सकते हैं।

जब मन सहज रूप में लगे, तब ही मंत्र जप कर लें। तारक मंत्र ‘श्री’ से प्रारंभ होता है। ‘श्री’ को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम शब्द ‘रा’ अर्थात र-कार और ‘म’ मकार से मिल कर बना है। ‘रा’ अग्रि स्वरूप है। यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है।

इस प्रकार पूरे तारक मंत्र ‘श्री राम, जय राम, जय जय राम’ का सार निकलता है- शक्ति से परमात्मा पर विजया योग शा में कहा गया है कि श्वास और निश्वास में निरंतर र-कार ‘रा’ और म-कार  ‘म’ का उच्चारण करते रहने से दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है। अध्यात्म में यह माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर फैंक दिए जाते हैं। इससे अंत:करण निष्पाप हो जाता है।

प्राचीन काल में सबरी, गिद्ध व अजामिल का राम नाम ने ही उद्धार किया था। राम नाम के संकीर्तन बिना जीवन रूपी भवसागर से पार नहीं उतरा जा सकता। राम नाम की भक्ति की प्राप्ति सत्संग के बिना और सत्संग की प्राप्ति श्रीराम की कृपा के बिना नहीं हो सकती। प्राचीन काल में ऋषि, मुनियों ने भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया है। राम नाम का जाप मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिला सकता है। क्योंकि राम नाम में वो अपार शक्ति है जिसका कोई अनुमान नहीं है। राम नाम का स्मरण करके हम जीवन के कष्टों का निवारण कर सकते हैं।राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है। बस, जरूरत है श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की।

जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।। यदि आप मन से दो मिनट के लिए भी ईश्वर को याद कर लेते हैं, तो यही सच्ची पूजा होती है। मानव को सदैव परमेश्वर की शरणलेनी चाहिए। नाम संकीर्तन से न केवल वातावरण शुद्ध होता है अपितु हमारी भक्ति पुष्ट होती है, मन शुद्ध होता है, क्रिया में अमंगलता का नाश होता है और अन्तिम काल में ईश्वर का साथ होने से मृत्यु का भय नहीं रहता।

आपन्न: संसृतिं घोरां यन्नाम विवशो गृणन्। तत: सद्यो विमुच्येत यद्विभेति स्वयं भयम्॥
(श्रीमद्भागवत)

घोर संसार-बंधन में पडा हुआ मनुष्य विवश होकर भी यदि भगवन्नाम का उच्चारण करता है तो वह तत्काल उस बन्धन से मुक्त हो जाता है और उस पद को प्राप्त होता है, जिससे भय स्वयं भय मानता है।

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राम नाम स्वयं ज्योति है, स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधान या समय का बंधन नहीं है

न देशनियमस्तस्मिन् न कालनियमस्तथा। नोच्छिष्टेऽपि निषेधोऽस्ति श्रीहरेर्नामिन् लुब्धक॥

व्याध! श्रीहरि के नाम-कीर्तन में न तो किसी देश-विशेष का नियम है और न कालविशेष का ही। जूठे अथवा अपवित्र होने पर भी नामोच्चारण के लिये कोई निषेध नहीं है।

चक्रायुधस्य नामानि सदा सर्वत्र कीर्तयेत्। नाशौचं कीर्तने तस्य स पवित्रकरो यत:॥

चक्रपाणि श्रीहरि के नामों का सदा और सर्वत्र कीर्तन करे। उनके कीर्तन में अशौच बाधक नहीं है; क्योंकि वे भगवान् स्वयं ही सबको पवित्र करनेवाले हैं।

न देशकालावस्थासु शुद्धयादिकमपेक्षते। किंतु स्वतन्त्रमेवैतन्नाम कामितकामदम्॥

यह भगवन्नाम किसी भी देश, काल और अवस्था में शुद्धि आदि की अपेक्षा नहीं रखता; यह तो स्वतन्त्र ही रहकर अभीष्ट कामनाओं को देनेवाला है।

न देशकालनियमो न शौचाशौचनिर्णय:। परं संकीर्तनादेव राम रामेति मुच्यते॥

कीर्तन में देश-काल का नियम नहीं है, शौचाशौच का निर्णय भी आवश्यक नहीं है। केवल राम-राम ऐसा कीर्तन करने से ही परम मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

‘श्रीराम जय राम जय जय राम’
‘श्रीराम जय राम जय जय राम’

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